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________________ कर्मसिद्धान्त १६७ पंचेन्द्रिय पर्यन्त चौरासी लाख योनियों में जो जीवोंकी अनन्स आकृतियाँ है। उसका निर्माता यह नाम-कर्म है । इस नाम-कर्म के द्वारा बनाए गए छोटेसे-छोटे और बहेमे-बड़े शरीर में यह जीव अपने प्रदेशोंको संकुचित अथवा विस्तृत कर रह जाता है। शरीरके बाहर प्रात्मा नहीं रहता। और न शरीरके एक अंश मात्रमें ही जीव रहता है। आपार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीने लिखा है "अणुगुरु-देहपमाणो उपसंहारप्पसप्पदो चेदा। असमुहदो ववहारा णिच्चयणयदो असंखदेसो वा ॥१०॥" -द्रव्यसंग्रह "जीव व्यवहार से अपने प्रदेशोंके संकोच अथवा विस्तारके कारण छोटे, बड़े शरीर, समुद्घात अवस्थाको छोड़कर, होता है। निश्चय नयसे मह जीव असंख्यातप्रदगी है।" शंकराचार्य कहते है कि-शरीर प्रमाण आत्माको माननेपर शरीरके समान आत्मा अविवाशी नहीं होगा और उसे विनाशशील मानने पर परम-मुक्ति नहीं मिलेगी। उनकी धारणा है कि मध्यमपरिमाणवाली वस्तु अनित्य ही होती है । नित्य होने के लिए उसे या तो आकाश के समान व्यापक होना चाहिये अथवा मणुके समान एक प्रदेशी होना चाहिए। यह कथन कल्पनामात्र है । क्योंकि यह तर्ककी कसौटीपर नहीं टिकता । अणु परिमाण और महत परिमाणका नित्यताके साथ अविनाभाव सम्बन्ध नहीं है और न मध्यम परिमाणका अनित्यताके साथ कोई सम्बन्ध है । इसके सिवाय एकान्त नित्य अथवा अनित्य वस्तुका सद्भाव भी नहीं पाया जाता । वस्तु द्रव्यदृष्टिसे नित्य और पर्याय दृष्टिसे अनित्य है । यह बात हम पिछले अध्यायमें स्याद्वादका विवेचन करते हुए स्पष्ट कर चुके हैं। प्राचार्य मतमोर्यने प्रमेयरत्नमालामें आस्माको शरीरप्रमाण सिद्ध किया है। क्योंकि, आत्माके ज्ञान, दर्शन, मुख, वीर्य लक्षण गुणों को सर्वागमें उपलम्बि होती है।' ___सर राधाकृष्णन्ने शंकराचार्यको पूर्वोक्त दृष्टिका उल्लेख करते हुए कहा है कि-"इन माक्षेपोंका जैन लोग उदाहरण देकर समाधान करते है। जैसे-बड़े के भीतर रखा गया क्षेपक घटाकाशको प्रकाशित करता है और बड़े कमरेमें रखे जानेपर नही दीपक पूरे कमरेको भी प्रकाशित करता है । इसी भांति, भिन्न १. "सदसाधारणगुणा ज्ञानदर्शन सुखवीर्यलक्षणास्ते च सर्वांगीणास्तत्रैछ घोपलभ्यन्ते ।" -पृ. १८२ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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