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________________ १३८ जेनशासन 'स्यात्' शब्दका अर्थ कोई-कोई 'शायद' करके स्याद्वादको सन्देहवाद समझते है। वास्तवमें स्यात्के साथ 'एन' शब्द इस बातको धोतित करता है कि उस विशेष दृष्टि बिंदुसे पदार्थका यही रूप है और वह निश्चित है, उस दृष्टिसे वह अन्यथा नहीं हो सकता । वस्तुस्वरूपकी अपेक्षा अस्तिरूप ही है। कभी भी स्वरूपकी बपेक्षा वह नास्तिरूप नहीं कही जा सकती ! काशी के प्रसिद्ध शार्शनिक विद्वान स्याद्वाद में वेदान्तियोंके अनिर्वचनीयतावादको झलक पाते हैं। उनके शब्द है-"जो हो, जैन मतका "स्याद्वाद" वही वेदान्त मतका अनिर्वचनीयतावाद | शब्दोंका भेद है, अर्थका नहीं।" अनिर्वचनीयताबाद सप्तभंग न्याय-प्रणालीका एक विकल्प है । वस्तुफै अस्ति और मास्ति रूप धमाँको एक साथ कहनेको असमर्थताके कारण जसे कथञ्चित अनिर्वचनीय कहा है । वेदान्त दृष्टि एकान्तरूप है, वह मत्व, असत्त्व आदि धर्मोके अस्तित्वको स्वीकार करती है । स्याद्वादसे सम्बद्ध अनिर्वचनीयतावादमें अस्तित्व-नास्तित्व आदि धर्मोकी अवस्थिति पाई जाती है। आचार्य विज्ञानन्दि कहते हैं-"सव" अमीरः अस्जिद पर घ है, ने सटीकार करते वस्तुका वस्तुत्व नहीं रहेगा। वह गधके सोंग समान अभावरूप हो जायगा । वस्तु कथञ्चित् असत् रूप है, स्वरूप आदिके समान पर-रूपसे भो वस्तुका असत्त्व यदि आपत्तिपूर्ण हो तो प्रतिनियत-प्रत्येक पदार्थका पृथक्-पथक स्वरूप नहीं रहेगा । और तब वस्तुओं प्रसिनियमका विरोध होगा । इसी प्रकार अन्य घमौका अस्तित्व एकान्त अनिर्वचनीयवाद सिद्धान्तको अपरमार्थताको प्रमाणित करता है। वेदान्तवादियोंको स्याद्वाद यदि अभीष्ट होता तो बेवास्तसूत्रमें 'नकस्मिन्नसम्भवान' सूत्र और उसके शांकरभाष्यमें आक्षेप न किया जाता । संकराचार्यने अपने शांकरभाष्य अध्याय २, सूत्र ३३ में बो स्याद्वादके विरुद्ध लिखा है उसकी आलोचना करनेके पूर्व यह लिख देना उपयुक्त प्रतीत होता है कि वर्तमान युगके प्रकाण्ड दार्शनिक किन्हीं-किन्हीं जनतर विद्वानोंने शंकराचार्यकी आलोचनाको सदोष और अज्ञानपूर्ण लिखा है । संस्कृतके प्रकाण्ड पण्डित डॉ. महामहोपाध्याय १. डॉ. भगवानदासजी, 'जनदर्शन' का स्याद्वादांक, पृ० १८० । २. "तथ सत्वं वस्तुधर्मः, तदनुपगमे वस्तुनो वस्तुस्वायोगात् सरविषाणादिवत् तथा कश्चिदसत्त्वं स्वरूपादिभिरिव पररूपादिमिरपि वस्तुनोऽसत्त्वानिष्टौ प्रतिनियतस्वरूपाभावादस्तुप्रतिनियमविरोधात् ।” -अष्टसहस्रीविवरण, प० १८३ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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