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________________ १३६ जैनशासन हाथी अपने स्वरूपको अपेक्षा सद्भाव रूप हैं लेकिन हाथीसे भिन्न ऊंट, घोड़ा आदि गजसे भिन्न वस्तुओंकी अपेक्षा हाथी असद्भावात्मक होता है । यदि स्वरूपको अपेक्षा हाथीके सद्भाव के समान पररूपकी भी अपेक्षा हाथीका सद्भाव हो तो हाथी, ऊँट, घोड़े आदिमें कोई अन्तर न होगा। इसी प्रकार यदि ऊंट मादि हाथीसे भिन्न पदार्थों की अपेक्षा जैसे गजको असद्भाव-नास्ति रूप कहते हैं उसी प्रकार स्वरूपकी अपेक्षा भी यदि गज नास्ति रूप हो जाए तो हाथीका सद्भाव नहीं रहेगा 1 "तत्त्वार्थ राजवार्तिक में आचार्य अकलंकदेवने बताया है कि वस्तुका वस्तुत्व इसी में है कि यह अपने स्वरूपको ग्रहण करे और परकी अपेक्षा अभाव रूप हो । इन विधि और निषेधरूप दृष्टियों को अस्ति और नास्ति नामक दो भिन्न धर्मो द्वारा बताया है । इस विषय को समझाने के लिए न्याय - शास्त्रमें एक उदाहरण दिया जाता है। कि दधि स्वरूपकी अपेक्षा दधि है, यदि वह दधिसे भिन्न ऊँटकी अपेक्षा भी दषि हो तो जिस तरह 'दवि खाभी' कहनेपर व्यक्ति दहीकी ओर जाता है उसी प्रकार उपयुक्त वाक्य सुनकर उसे ऊँटकी और दौड़ना था । किन्तु इस प्रकारका क्रम नहीं देखा जाता। इससे यह निष्कर्ष न्यायोपात्त है कि वस्तु स्वरूपको अपेक्षा अस्तिरूप है और पररूपकी अपेक्षा नास्तिरूप । जिस प्रकार स्वरूप - चतुष्ट्य (स्व- द्रव्य, स्व-क्षेत्र, स्व-काल और स्व-भाव ) की अपेक्षा वस्तु अस्तिरूप है और परचतुष्टयकी अपेक्षा नास्तिरूप है उसी प्रकार वस्तु उपर्युक्त अस्ति नास्ति धर्मोको एक साथ कथन करनेको वाणीको असमतायश अवक्तव्य - अनिर्वचनीयरूप भी कही गई है। इस विषय में एकान्तवादी वस्तुको सर्वथा अनिर्वचनीय शब्दके द्वारा अनिर्वचनीय कहते हुए परिहासपूर्ण अवस्थाको उत्पन्न करते हैं। इसी कारण स्वामी समन्तभवने आप्तमीमांसा में लिखा है "अवाच्यतं कान्तेऽभ्युक्तिर्नावाच्यमिति युज्यते ।” -श्लोक १३ । अवाच्यता रूप एकान्त माननेपर वस्तु अवाच्य रूप है— अनिवंदनीय है, यह कथन संगत नहीं है। तार्किकके ध्यान में यह बात तनिक में आ जाएगी, कि जब अनिर्वचनीय शब्दके द्वारा वस्तुका प्रतिपादन किया जाता है तब उसे सर्वधा का निर्वचनीय कैसे कह सकते है । १. "स्वपरात्मोपादानापोहनव्यवस्थापाद्यं हि वस्तुनो वस्तुध्वम् ।" १० २४
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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