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________________ ११८ जैनशासन याला देश, जाति आदिकी संकीर्ण परिधियोंसे पूर्णतया उन्मुक्त हो और यथार्थमें जिसकी आत्मामें 'वमुव कुटुम्बकम्' का अमल्य सिद्धान्त विद्यमान हो । विश्यात लेखक लुई फिशरका कथन कितना वास्तविक है; हमने पिरले महायुद्धमें कैंसर को पगजित किया था, तो पश्चात् हमें हिटलरकी प्राप्ति हुई । हिटलरके पराजय के उपरान्त यह राम्भव है कि हमें और भरे भतिकारी हिटलर मिले। यह तब तक होगा, जब तक हम उस भूमि और बोजको ही नहीं समाप्त कर देते, जिससे हिटलर, मुसोलिनी तथा अन्य लड़ाकू लोग पैदा होते हैं।' इस प्रसंगमें जर्मन-विद्वानकी अपेक्षा प्रख्यात विद्वान् वैरि' सादरकरको हिंसा-अहिंसा सम्बन्धी चिन्तना भी विचारणीय है। वे लिखत है-'हिमा और अहिंसाके कारण दुनिया चलती हैं। अपनी-अपनी मोमाके अन्दर दोनों आवश्यक है । इनके बिना संसार नहीं चल सकता । माता अपने वक्षस्थलसे बच्चेको दूध पिलाती है, नसके पास में अहिंसा उलः: है र जिगर उत्तर कोई दूसरा आक्रमण करने के लिए आता है तो वह मुकाबलेपर हिंसा के लिए तैयार हो जाती है। इस प्रकार हिंसा-अहिंसा दोनों एक स्थानपर विद्यमान हैं 1 ममस्त सृष्टि हिसा-महिंसापर खड़ी है, इसने तो यह प्रतीत होता है कि माता जो आक्रमणकारी की हिंसाफे लिए प्रतरती है, वह उचित है ।'' इस प्रसंगम जैन गृहस्थकी दृष्टि से यदि हम विचार करें तो आक्रमणकालीक मुकाबले के लिए माताका पराक्रम प्रशंसनीय गिना जाएगा, उसे विरोधी हिंसाको मर्यादाके भीतर कसना होगा जिसका गृहस्थ परिहार नहीं कर सकता। आगे चलकर बोसावरकर संकल्पी हिंसाको भी चित बताते है । उसका वैज्ञानिक अहिंसक समर्थन नहीं करेगा। वे कहते हैं- "यदि मैं चित्रकार होता, तो ऐसी शेरनीका चित्र बनाता, जिसके महसे रक्तकी बिन्दु टपकती होती। इसके अतिरिक्त उसके सामने एक हिरन पड़ा होता, जिसे मारने के कारण उसके मुंहमें रक्त लगा होता । साथ ही वह अपने स्तनों में बच्चे को दूध पिला रही हो । ऐसा चित्र देखकर आदमी इझट समझ सकता है कि दुनियानो चलाने के लिए किस प्रकार हिंसा-अहिंसाकी आवश्यकता है । हिंसा-अहिंसा एक दूसरे पर निर्भर हैं।" ?. "We defeated the Kaiser and got a Hitler Following the defeat of Hitler, we may get a worse Hitler, unless we distroy the soil and seed out of which Hitlers, Mussolinees and militarists grow." -Vide "Empire'' by Louis Fischer P, 11. २. ''विशालभारत", सन् ४१ ।
SR No.090205
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size7 MB
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