________________
द्रव्य संग्रह
१०-मूल मन्त्र ११-मन्त्रराज १२-सर्वमान्य मन्त्र कायोम को परमेष्ठी वाचल पाता है इसको मिनि कोजिए।
१०-अरहंत, अशरोरो अर्थात् सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, मुनि ( साधु ) ये पांच परमेष्ठी हैं। इनके पहले अक्षरों के मिलाने से 'ओम' को सिद्धि होती है।
__ अरहंत का पहला अक्षर 'अ' अशरीरी। सिद्ध ) का पहला अक्षर 'अ' = अ+अ-आ आचार्य का पहला अक्षर 'आ' - आ + आ आ उपाध्याय का पहला अक्षरेउ-आ+उ-ओ मुनि का पहला अक्षर म् = ओ+म् - ओम् शब्द बनता है।
अ+अ+ आ इन समान वर्गों के मिलाने के लिए संस्कृत व्याकरण में 'अकः सवर्णे दोर्घः' सूत्र है। सूत्रानुसार दोर्घ 'आ' बन जाता है।
मा+उ दोनों के मिलाने के लिए आद्गुणः सूत्र लगने से आ और उ मिलकर ओ बनता है | ओ के साथ म् मिलाने से 'ओम' शब्द बन जाता है।
प्र-ओम् की मान्यता ।
ज०-ओम् यह सर्वमान्य मन्त्र है । यह जैन व जेनेतर सभी सम्प्रदायों में पूज्य माना गया है।
जेन लोग-ओम् को परमेष्ठी वाचक मानते हैं।
जेनेतर लोग अ+उ+म्-तीनों मिलाकर ओम् मानते हैं । तथा उनके अनुसार 'अ' विष्णुवाचक है ।
'उ' महेश्वर वाचक है।
और म ब्रह्मा का वाचक है। प्रा-'ओम, ओरम् और 'ओं' में से शुद्ध कौन-सा है ?
२०-तोनों (ओम, ओ३म्, ओं) शुद्ध हैं। तीनों की व्याकरण से सिद्धि होती है । मोऽनुस्वारः सूत्र से ओम के म् का अनुस्वार होने पर 'मों हो जाता है । 'बोनस' का तन्त्र व्याकरण के अनुसार मिपातन से सिव है।