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द्रव्य संग्रह
प्र० - प्रदेशबन्ध किसे कहते हैं ?
उ०- ज्ञानावरणादि कर्म रूप होने वाले पुद्गल स्कन्धों के परमाणुओं की संख्या को प्रदेशबन्ध कहते हैं ।
प्र०-चार प्रकार के बन्धों का निमित्त क्या है ?
उ०- इन चार प्रकार के बन्धों में प्रकृति और प्रदेशबन्ध योग के निमित्त से होते हैं तथा स्थिति और अनुभागबन्ध कषाय के निमित्त से होते हैं।
भाव संवर और व्रव्यसंवर का लक्षण
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चेवणपरिणामो यो कम्मस्सासवणिरोहणे हेऊ । सो भावसंवरो ललू दव्वस्सावरोहणे अन्गी ॥३४॥
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अभ्ययार्थ
( जो ) जो । ( चेंदणपरिणामो ) आत्मा का भाव। (कम्मस्ट ) कर्म पुद्गल के । ( आसवणिरोहणे ) आस्रव के रोकने में १ { हेऊ ) कारण है । ( सो ) बह । ( भावसंवरो) भावसंवर है । ( दव्वस्स) कर्मरूप पुद्गल द्रव्य का । ( आसवरोहणे ) बास्रव रुकना । ( खलु ) निश्चय से । ( अण्णो ) अन्य अर्थात् द्रव्यसंवर है ।
अर्थ
आत्मा का जो परिणाम कर्म पुद्गल के रोकने में कारण है वह भावसंबर है तथा कर्म रूप पुद्गल द्रव्य का आस्रव हकना निश्चय से द्रव्य संगर है।
प्र०-संवर के कितने भेद हैं ?
उ०-दो भेष है---भावसेवर, २-द्रव्यसंवर ।
प्र०- भावसंवर किसे कहते हैं ?
उ०- आखव को रोकने में कारणभूत आत्म-परिणाम माक्र्सवर है ।
प्र० - द्रव्यसंवर किसे कहते हैं ?
ज० कर्मकप पुद्गल द्रव्य का आसव रुकना द्रव्यसंबर है ।