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द्रव्य संग्रह
आकाश-अनन्त प्रदेशी है, पद्गल-संख्यात, असंख्यात व अनन्त प्रदेशो है तथा काल द्रव्य एक प्रदेशी है।
प्र०-एक जीव के असंख्यात प्रदेशों का प्रमाण क्या है ?
उ-एक जीव के असंख्यात प्रदेश होते हैं क्योंकि वह सम्पूर्ण लोकाकाश को व्याप्त होने को क्षमता रखता है।
अथवा लोकपूरण समुद्घात में जोव के प्रदेश सम्पूर्ण लोकाकाश में फैल आते हैं इससे भी सिद्ध है कि जीव के असंख्यात प्रदेश हैं।
प्र-धर्म और अधर्मद्रव्य के असंख्यात प्रदेश की प्रमाणता दीजिये।
उ.-धर्म और अधर्मद्रव्य भी असंख्यात प्रदेशो हैं, क्योंकि ये दोनों समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं और लोकाकाश असंख्यात प्रदेशी है अतः उसमें व्याप्त होकर रहने को ( जीव की दृष्टि से ) और व्याप्त होकर रहने वाले ( धर्म और अधर्म ) असंख्यात प्रदेशी हैं।
प्र०-आकाश के अनन्त प्रदेशों की प्रमाणता दोजिये।
उ.-आकाश अनन्तप्रदेशी है क्योंकि वह लोक के ऊपर नीचे और क्षगल-बगल में चारों ओर से फैला हुआ ( कहां तक फैला हया है, इसको कोई सोमा नहीं है ) है अतः आकाश की अनन्तप्रदेशोपता सिद्ध है। __ प्रल-मूर्त पुद्गल द्रव्य में संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशो सिद्ध कीजिये।
जल-मूर्त पुद्गल में द्रव्य संख्यात. असंख्यात और अनन्त प्रदेश पाये जाते हैं। इसका कारण है कि पुद्गलों में पुरण और गलन होता रहता है। अतः कभी वे परमाणु रूप से बिखर जाते हैं और कभो आपस में मिलकर स्कन्ध बन जाते हैं। उनमें कोई स्कन्ध संख्यात अणु मिलकर संख्यातप्रदेशी, कोई असंख्यात अणु मिलकर असंख्यातप्रदेशी सपा कोई अनन्त परमाणुओं के मिलने से अनन्तप्रदेशो होते हैं। (जब तक परमाणु अलग-अलग रहते हैं तब तक वे एकप्रदेशी होते हैं)।
प्र-कालद्रव्य कायवान क्यों नहीं है ? उ-कालद्रव्य एक प्रदेशी है अतः वह कायकान नहीं है।