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द्रव्य संग्रह
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प्र० - एक पुद्गल परमाणु भी एकप्रदेशी होता है, उसे अस्तिकाय क्यों कहा गया ?
उ०- काला सदा एक प्रदेश वाला ही रहता है किन्तु पुद्गल परमाणु में विशेषता है- वह एक प्रदेश वाला होकर भी स्कन्ध रूप में परिणत होते ही नाना प्रदेश ( संख्यात, असंख्यात, अनन्त ) वाला हो जाता है । कालाणु में बहुप्रदेशीपने की योग्यता ही नहीं है परमाणु में वह योग्यता है इसलिए परमाणु को अस्तिकाय कहा गया है।
प्र० - अणु-अणु सब समान होने पर भी कालाणु में बहुप्रदेशोपने की योग्यता क्यों नहीं है ?
उ०- पुद्गल अणु सभी समान होते हैं पर कालाणु पुद्गल के अणुओं के समान नहीं हो सकते हैं । पुद्गल परमाणु में रूप, रस आदि पाये जाते हैं इसलिए वह मूर्तिक है, स्कन्ध बन जाता है परन्तु काला अमूर्तिक है, स्पर्श, रसादि गुणों से रहित है अतः उसमें बहुप्रदेशीपना बन नहीं पाता ।
अस्तिफाय का लक्षण
संति जयो तेणेये अस्थीस भांति जिनवरा अम्हा । काया इव बहुवेसा तम्हा, काया य अस्थिकाया य ॥२४॥
अत्थयावं—
( जदो ) क्योंकि 1 ( एदे ) ये द्रव्य ( जोवादि ६ ) ( सन्ति ) सदा विद्यमान रहते हैं । ( तेण ) इसलिए। ( जिणवर) जिनेन्द्रदेव | ( अस्थिति ) मस्ति ऐसा । ( भगति ) कहते हैं । (य) और । ( जम्हा ) क्योंकि । ( काया इव } शरीर के समान ( बहुदेसा) बहुप्रवेशी हैं। ( तम्हा ) इसलिए। ( काया) 'काय' ऐसा कहते हैं। (य) और । ( 'अस्थि - काया' ) दोनों मिलने पर 'अस्तिकाय' कहलाते है ।
अस्तिकाय में दो शब्द है- एक अस्ति और दूसरा काय जीव पुदगल, धर्म, अधर्म और आकाश तथा काल ये सदा रहते है इसलिए जिनेन्द्रदेव इनको 'अस्ति कहते हैं तथा ( काल को छोड़कर ) शरीर के समान बहुप्रवेशी है अतः काय ऐसा कहते हैं। दोनों मिलने पर 'अस्तिकाय' कहलाते हैं ।