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द्रव्य संग्रह
प्र० - वर्तना किसे कहते हैं ?
उ०- समस्त व्रणों में सूक्ष्म परिवर्तन के निमित्त को वर्तना कहते हैं । जैसे कपड़ा, मकान वस्त्रादि में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, सूचन परिवर्तन है। कपड़ा, मकानादि जीर्ण हो जाते हैं। मनुष्य स्त्री-पुरुष पचास वर्ष, पच्चीस वर्ष पुराना हो गया, यह काल द्रव्य का हो प्रभाव है ।
प्र० परिणाम किसे कहते हैं ?
उ०- समस्य द्रव्यों के स्थूल परिवर्तन के निमित्त को परिणाम कहते हैं ।
प्र०
-'परिणामादी' यहाँ आदि से क्या लिया गया है ? उ०- परिणाम तथा क्रिया, परत्व और अपरख लिये गये हैं।
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निश्चय काल का स्वरूप
लोयायासपदेसे इक्के क्के जे ठिया हु इक्केक्का । रमणानं रासोमिव से कालागू असंलदम्बाणि ॥ २२ ॥ अन्वयार्थ
( इनकेक्के ) एक-एक 1 ( लोयायासपदेसे ) लोकाकाश के प्रदेश पर (जे) जो ( रयणाण ) रत्नों की ( रासीमिव ) राशि अर्थात् ढेरो के - समान ( इक्केक्का ) एक-एक । ( कालाण ) काल द्रव्य के अणु । (ठिया ) स्थित हैं । (ते ) वे ( हु ) निश्चय से । ( असंखदव्त्राणि ) असंख्यात द्रव्य हैं।
अर्थ
लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालाणु रनों की राशि के समान स्थित हैं वे कालाणु असंख्यात हैं ।
प्र० - लोकाकाश में फाल द्रव्य कैसे स्थित है ? क्या वे आपस में चिपकते नहीं हैं ?
० - लोकाकाश असंयप्रदेशी है। एक-एक प्रदेश पर एक-एक - कालाणु रत्नराशि के समान स्थित है। जैसे रत्नों को ढेरो में एक-एक रन दूसरे से मिले तो रहते हैं किन्तु आपस में चिपकते नहीं हैं देते हो लोकाकाश के प्रदेशों पर स्थित कालानु मी आपस में चिपकते नहीं हैं।
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