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द्रव्य संग्रह प्र-इतने छोटे लोकाकाश में अनन्त जोव, जीवों से भी अनन्तगुणे पुदगल और असंख्यात काल परमाणु कैसे समा सकते हैं?
ज-लोकाकाश अलोकाकाश से छोटा होने पर भी उसमें अवगाहन शक्ति बहुत बड़ी है। इसीलिए उसमें सभी द्रव्य समाये हुए हैं।
उदाहरण के लिए-जिस कमरे में एक दीपक का प्रकाश हो रहा है. उसी में अन्य सेकड़ों दोपक रख दिये जायें तो उनका प्रकाश भी पहले वाले दोपक में समा जाता है । आकाश एक अमूर्तिक द्रव्य है। उसमें अवगाहम करने वाले सभी दव्य यदि मूर्तिक और स्थूल होते तथा आकाश स्वयं भी मूर्तिक होता तो लोकाकाश से इतने द्रव्यों का अवगाहन नहीं होता । पर लोकाकाश में निवास करने वाले अनन्त जीव अमूर्तिक हैं, पुद्गलों में भी कुछ सूक्ष्म हैं और कुछ बादर हैं, कालाणु, धर्म, अधर्म द्रध्य अमूर्तिक हो हैं अतः आकाश में सभी द्रव्य समाये हुए है, इसमें कोई विरोध नहीं आता है।
कालद्रव्य का स्वरूप व उसके दो भेव वश्वपरिवरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो।
परिणामादीलसो, बट्टणलक्सो म परमट्ठो ॥२१॥ अन्वयार्थ
( जो) जो । ( बब्बपरिवट्टल्यो ) जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आदि द्रव्यों के परिवर्तन में कारण है। { सो} वह । ( कालो) कालद्रव्य । ( हवेई ) है 1 (परिणामादीलक्खो) परिणाम आदि जिसका लक्षण है। ( वयहारो) वह व्यवहार काल है । ( य ) और । ( पट्टणलवलो) वर्सना लक्षण वाला । (परमठो) परमार्थ अर्थात् निश्चय काल है। मर्च
'समी द्रव्यों में परिवर्तन होता रहता है । इस परिवर्तन में जो कारण है वह कालद्रव्य कहलाता है। काल द्रव्य के दो भेद-१-व्यवहार काल, २-निश्चय काल | जिसका लक्षण परिणाम आदि है वह व्यवहार-काल है और जिसका लक्षण वर्तना है वह निश्चयकाल है।
प्र-कालद्रव्य अन्य द्रव्यों के परिणमन में कौन-सा निमित्त है? उ.-उदासीन निमित्त है।