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________________ KAYNEASTEKAUZERSALICANTE, • सच्चे देव का स्वरूप LAANANANASAYASANTEZEA सत्यदेव सब दोष बिन, सत्य गुरु बे चाह । सत्य शास्त्र अहिंसोपदेशी, तीन रतन जगमांहि ।। १९ ।। अर्थ - उपर्युक्त अठारह दोषों से रहित, छियालीस गुणों से सम्पन्न, चार घातियाँ कर्मों के नाश करने वाला, सर्वज्ञ, वीतरागी, हितोपदेशी परम सर्व जीवन कल्याण कर्ता दुःखों का हर्ता, संसार तारक, मोक्षमार्ग आरूढ़ कर्ता म पूज्य अरहंत परमेष्ठी ही सच्चे देव हैं। इसके विपरीत स्वरूप से युक्त कोई अन्य व्यक्ति सच्चा देव नहीं हो सकता है। सच्चे देव के ४६ गुणों में ८ प्रातिहार्य, ४ अनन्तचतुष्टय, १० जन्म के अतिशय, १० केवलज्ञान के अतिशय और १४ देवकृत अतिशय होते हैं। ८ प्रातिहार्य - १. छत्रत्रय, २. चमर चौसठ, ३. भामण्डल, ४. अशोक वृक्ष, ५. देव दुंदुभि, ६. दिव्य पुष्प वृष्टि, ७. गंधोदक वृष्टि और ८. रत्नमयी सिंहासन होते हैं। ४ चतुष्टय अनन्त - अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य ये चार अनन्त चतुष्टय होते हैं। १० जन्मातिशय- १. अतिशय सुन्दर रूप, २. पसेव रहित शरीर, ३. मल-मूत्र रहित शरीर, ४. सुगन्धित शरीर, ५. दूध के समान सफेद रक्त, ६. वज्र वृषभ नाराच संहनन, ७. प्रिय हित बचन, ८. अप्रमित वीर्य, ९. १०८ शुभ लक्षण युत शरीर और १० समचतुरस्र संस्थान ये जन्म के १० अतिशय होते हैं। कैवल्य के १० अतिशय - १. चारों दिशाओं में सौ-सौ योजन पर्यन्त सुभिक्ष होना, २. आकाश में गमन, ३. अदया का अभाव, ४. कवलाहार नहीं होना, ५, उपसर्ग का अभाव, ६. चारों ओर मुख दिखना, ७. सम्पूर्ण SAKAKAKAKASTETUTETEAUCHESSLYASAGATAVASTELLATE CEREMONIAEA धमजिन्द श्रावकाचार ९७
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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