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________________ मा QUASANAEZANATAVARASALALARÍNANASKARAZANAHARAKA २. पूजा - विशेष आदर-सत्कार, पूजा, प्रशंसा प्राप्त होने पर उसका अंहकार करना पूजा मद कहलाता है। ३. बाति मद - उत्तम जाति में जन्म पाकर, उच्च गौत्र प्राप्त कर उसका अभिमान करना । अर्थात् में उच्च जातीय हूँ, अन्य नीच हैं ऐसा विचार कर उनका तिरस्कार करना, घृणा की दृष्टि से देखना जाति मद है। ४. कुलमद - निर्दोष वर्ण व कुल के पाने पर उसमें अहंकार भाव होने को कुलमद कहते हैं। ५. बल - वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम विशेष से शारीरिक शक्ति अधिक मिले तो अपने को सर्वोपरि पहलवान मानकर इठलाना बलमद है। ६. ऋद्धिमद - तप विशेष से प्राप्त ऋद्धियों का घमण्ड कर उनका दुरूपयोग करना अपनी प्रभुता प्रदर्शन करना ऋद्धिमद है। ७. तप - तपश्चरण करते हुए मैं विशेष तपस्वी हूँ। मेरा तप सर्वोत्तम है। मेरे जैसा तप अन्य नहीं कर सकता ऐसी मान्यता तपमदकारी है। ८. रूपमद - पूर्वोपार्जित पुण्योदय से शरीर सौन्दर्य, रूप, लावण्य प्राप्ति में अहंकार करना रूप मद है। इन सभी मदों का मूल मान कषाय है। आचार्य कहते हैं "मानेन भव वर्द्धनम्" अर्थात् मान कषाय संसार भव पद्धति बढ़ाने वाली है सम्यक्त्व की घातक है । अतः त्याज्य है ।। १८ ।। १८. ज्ञानं पूजां कुलं जातिं बलमृद्धिं तपोः वपुः। __ अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मयाः॥ २५ रत्न श्रा. ।। अर्थ - विद्या का मद, ज्ञानमद, आदर-सत्कार आदि का मद, कुल मद, जाति मद, ऋद्धि मद, तप का मद, शरीर का मद - ये आठ मद या अहंकार हैं। निमित्त की अपेक्षा होने वाले भेदों की यहाँ विवक्षा है।। १८॥ SaamandersedesisamanGRanasamasumsasasARGERadsaestauran धत्तिन्द श्रातकाचार -८९६
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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