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________________ 12 ३. त न तः रा 7. कर धः SANSARA 2236 KRESNAUSKASK विद्याओं का ईश्वरपना, ८. पलकों का नहीं झपकना, ९ नख - केशों की वृद्धि का अभाव, १०. ताल- ओष्ठ का स्पंदन नहीं होना । - देवकृत १४ अतिशय - १. अर्द्धमागधी भाषा, २ . सर्व प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव अर्थात् स्वभाव विरोधी सर्प-नेवलादि में भी प्रेम होना, ३. सर्व ऋतुओं के फल-फूल एक साथ फलना, ४. दर्पण समान भूमि का होना, ५. मंद सुगंध वयार, ६. सर्वजन आनन्द, ७. सुगंधित वायु बहना, ८. एक-एक योजन की भूमि धूल-कंटक रहित होना, ९. सुगंधित गंधोदक वृष्टि, १०. प्रभु के चरणों के न्यास नीचे २२५ स्वर्ण कमलों की रचना, ११. शस्यस्यामला भूमि होना, १२. शरद कालीन समान सरोवरों का जल व निर्मल आकाश का होना, १३. दिशाओं का निर्मल होना और १४. धर्म चक्र का आगे-आगे चलना । इस प्रकार ३४ अतिशय, ८ प्रातिहार्य और ४ अनन्त चतुष्टयों से सहित ही सच्चा देव होता है । वे ही आराध्य - पूज्य हैं । पूर्वकथित निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु ही सच्चा गुरू हैं और आप्त अरहंत प्रभु प्रणीत, पूर्वापर विरोध रहित, मिथ्यात्व खण्डक आगम ही सच्चा प्रामाणिक शास्त्र है। इसी से इन्हें तीन रत्न (देव, शास्त्र, गुरु) कहा है क्योंकि ये ही तीनों रत्नत्रय धर्म की आधारशिला हैं ।। १९ ।। • सप्त तत्त्व नामावली जीव अजीव के योग से करे कर्मास्रव अरु बंध । " संवर निर्जर कर्म हनि, पाये शिव सम्बन्ध ॥ २० ॥ अर्थ-जिनागम में सात तत्व कहे हैं - १. जीव, २. अजीव, ३. आम्रव, ४. बंध, ५. संवर, ६. निर्जरा और ७. मोक्ष । चेतना गुण जिसमें है KABABABABAEAEAEAEREKEKEZELENCHCACACIAGASAGASASAGA धर्मानन्द श्रावकाचार ९८
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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