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________________ RamansevasaeKERCIETurmasaTKARRESTERYTarsawaarsaniya • उत्तम सिद्धान्त पालने का उपदेश सहयोग हिंसा से तजकर, सत्याग्रह नित पाल। अहिंसाभक्त परमात्मा, क्यों न बनो बुधवान ! ॥२५॥ अर्थ - संसार में अनेकों कला-कौशल एवं विद्याएँ हैं। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार मनुष्य उनमें नैपुण्य प्राप्त करते हैं । सामान्य से हर कलाकार, प्रत्येक विद्या के ज्ञाता को हम विद्वान, बुद्धिमान कह देते हैं, परन्तु वास्तविक विद्वान-बुधजन है कौन ? इस पद्य में उसी का लक्षण स्पष्ट किया है। वैज्ञानिकों में एक से एक बढ़कर नवीन-नवीन आविष्कारक हैं, धर्मक्षेत्र में भी विद्वानापण्डितों की बाढ़ आ रही है, पर इनमें यथार्थ विद्वान कौन हैं ? कितने हैं ? क्या वाक्जाल फैलाकर उदरपूर्ति का उपाय करना, चमत्कार दिखाकर महल अटारियाँ कारखाने चलाकर ऐशो-आराम का जीवन बिताना, विषय भोगों में रत रहना, अभक्ष्य भक्षण, रात्रि भोजन करते रहना क्या विद्वत्ता है ? नहीं विद्वान की पहिचान धर्माचरण, सदाचरण, शिष्टाचार और निस्पृहता से है। देव-शास्त्र-गुरु भक्ति से है। दया, अनुकम्पा, करुणा और सरल निष्कपट आचरण से होती है। हिंसा कर्म से विरत और अहिंसा धर्म में प्रीति विद्वान् का लक्षण है। कोरा शाब्दिक ज्ञान प्राप्त कर लेना बुद्धिमत्ता नहीं है अपितु जिनागम का तल स्पर्शी रहस्य ज्ञात, तत्त्व स्वरूप पहिचान तदनुकूल जीवन में आचरण करने वाला बुद्धिमंत है। ज्ञान है क्या ? जिसके द्वारा विषयों से विरक्ति हो, मन संयत बने, संयम धारण की भावना जाग्रत हो, उत्तरोत्तर आत्म विशुद्धि वृद्धिंगत होती जाय। संसार, शरीर, भोगों के प्रति विकर्षण होता जाय, धर्म और धर्मात्माओं में आस्था, वात्सल्य बना रहे आदि गुणों का विकासक प्रकाशक ज्ञान-सम्यक् ज्ञान है और इस ज्ञान XAURRACANADANAMAR BATASA R ANA RACUNARARANA धर्मानन्द श्रावकाचार-७३
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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