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________________ CatarataRU ARUBAKülarata asa A XEADASARK • सच्चे हिन्दु का कर्तव्य जीव जाति सकल पहिचाने, हिंसा से रहे दूर। सच्चा हिन्दू होय कर, दया करे भरपूर ।। २४ ॥ अर्थ - यहाँ हिन्दू जाति का यथार्थ लक्षण बतलाया है। क्योंकि जन्म के साथ तदनुरूप कर्त्तव्य भी पालन करना चाहिए। यथा कोई मनुष्य, मनुष्य गति में जन्म पाकर नाम से तो मनुष्य हो गया पर मानवता बिना कर्त्तव्य पाले नहीं आ सकती । इसी प्रकार हिन्दू मात्र नामधारी से हिन्दू कहला नहीं सकता है। यथार्थ शब्द से नहीं जो भाव से भी हिन्दू बनना चाहता है उसे समस्त पर्यायों में रहने वाले जीवों की जाति को समझना चाहिए। जो जीव जाति ज्ञात कर उनका रक्षण करता है । उनको किसी प्रकार उत्तापन, विदारण, मारण, च्छेदन-भेदन आदि नहीं करता है, सतत दया रूप कोमल परिणाम रखता है, पाप भीरू होता है, धर्मज्ञ और सदाचारी होता है, अत्याचार व अनाचार, वैर, अभिमान, कलह, चुगली, निन्दा, असत्य भाषण, चोरी, अब्रह्म, परस्त्री सेवन आदि पापों से दूर रहता है वही सच्चा हिन्दू है। क्योंकि ये सभी कार्य हिंसा के ही रूपान्तर हैं। गीता में एक उपाख्यान आया है “जिस समय पांचों पाण्डव अज्ञातवास में भ्रमण कर रहे थे, तब किसी समय भोजन की तलाश में थे। किसी एक ने उन्हें प्याज मिश्रित भोजन दिया उस समय युधिष्ठिर ने कहा "ब्राह्मण: अहं पलाण्डु न भक्षयामि" अर्थात् मैं ब्राह्मण हूँ प्याज नहीं खाता । वर्तमान हिन्दू बांधव विचार करें उनमें हिन्दूत्व है या नहीं ?, है तो कितने अंश में है ? विवेक चक्षुओं को खोलकर वास्तविक हिन्दू बनने का प्रयत्न करें। दया धर्म सर्वोपरि धर्म है।॥ २४ ॥ MUSamaliSamestruaDNAESTERNisaamansaram धमनिन्द श्रावकाचार
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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