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________________ NARREGARANDKARAKU PRACA ANAR NASIRGET "अयोध्या पहुँचने पर अवश्य ही शीघ्र बुलाऊँगा, उसे आश्वस्त करने को कई प्रकार शपथ करने भी कहा, परन्तु वनमाला ने उन्हें स्वीकार नहीं किया । तब अधीर हो लक्ष्मण ने कहा - "तुम्हीं बताओ किस शपथ से तुम्हें विश्वास होगा? उसने कहा “रात्रि भोजन में जो पाप होता है वह मुझे होगा' यदि वायदानुसार नहीं बुलाया तो । ठीक है ऐसा ही हो । इससे स्पष्ट होता है कि रात्रि भोजन हिंसा महापाप और गृद्धता का कारण होने से महा निंद्य, पापोत्पादक है, त्याज्य है, नरक का द्वार है। इसी प्रकार पाँच प्रकार के उदम्बर फल भी अभक्ष्य व तजनीय है। कारण ये क्षीर फल कहलाते हैं। ___ इनमें अनेकों सूक्ष्म जन्तु भरे रहते हैं, वे एक साथ ही मरण को प्राप्त हो जाते हैं। उनका पृथक करना अशक्य है। इनके त्यागने पर श्रावक संज्ञा सार्थक होती है। प्रधान-अन्ना भी अलक्ष्य में धम्मिलित है क्योकि यह अनन्त जीवों का पिण्ड हो जाता है, जिससे भयंकर हिंसा होती है। परिणामों में अदयाभाव जाग्रत होता है, कुछ समय बाद फफूंद हो जाती है जो अनन्तानन्त जीवों का पिण्ड होता है। त्रस जीवों का समूह होने से मांस भक्षण का पाप लगता है। कन्दमूल भी अनन्तकाय है क्योंकि इनमें अनन्तानन्त निगोदिया जीव रहते हैं। एक-एक अंश में प्रजनन शक्ति रहती है। उदाहरण के लिए आलू को लें, इसमें एक आलू में जितनी गांठे होती हैं उतने ही अंकुर निकलते हैं, पौधे उगते हैं। जौ, गेहूँ, चना आदि में एक-एक में एक-एक ही वृक्ष होता है पर इन कन्दों में वैसा नहीं है। अतः ये दसों प्रकार के कन्द दयालु, सन्त- विवेकी जनों को त्यागना चाहिए। इसी प्रकार से चलित रस हुए सभी पदार्थ त्यागने योग्य हैं। जैसे - आम, जाम, सन्तरा आदि का स्वाद बिगड़ गया है तो वे चलित रह कहलाते हैं क्योंकि विकृति उत्पन्न करते हैं, अतः परिहार करना चाहिए। धीमान् जनों को प्रत्येक वस्तु का स्वरूप ज्ञात कर ही प्रयोग करना चाहिए ।। २३ ॥ BREERERNATHERSASSAGESAMASTERESARSA SURESARURETER धजिन्द प्रावकाचार-७१
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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