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________________ $24.75V i as/ REZUL Uusaadeks जिस प्रकार घर विरुद्ध आचरण नहीं करना उसी प्रकार पुर, नगर विरुद्ध भी नहीं चलना चाहिए । राजा राज्य का अधिनायक होता है। प्रजा पालक, देश का संरक्षक होता है। न्याय-नीति, सदाचारादि प्रपालक होकर प्रजा को भी उसी ढांचे में ढालता है । प्रजा के सुख-दुःख का निरीक्षण कर तदनुरूप व्यवस्था करता है। राज्य शासन में समचित्त, सावधान, विवेकी एवं धर्मात्मा राजा को कहा है - "सर्वदेवमयो राजां।" राजा शिष्टों का पालन-पोषण और दुष्टों को उचित दण्ड विधान कर गृहस्थी, समाज, राज्य, देश और राष्ट्र में सुख-शान्ति बनाये रखने का प्रयत्न करता है। राजशासन के अपने नियम, कानून, आदेश, आज्ञा आदि होते हैं जिनका पालन प्रजा को अनिवार्य रूप से, वफादारी एवं निश्छल भाव से करना चाहिए । राज्य और राजा की मर्यादा को सुरक्षित रखने के लिए धर्म और आगमानुसार, अपनी संस्कृति, परम्पराओं, जाति, कुल, वर्ण व्यवस्थाओं के अनुसार रहन-सहन, आचार-विचार, वेशभूषा, बोल-चाल, खान-पान, शील, संयम, तप, त्याग, दानादि में प्रवृत्ति करना चाहिए। इसके विपरीत, इन्कम टैक्स, सेल टैक्स आदि नियमों का उल्लंघन करना, दुराचार, व्यभिचार, अनाचार, चोरी, डकैती, लूट-पाट, मार-पीट, कलह विसंवादादि करना, परिवार, पुर, गेह, देश, राज्य, राष्ट्र विरुद्ध आचरण हैं। इनका परिणाम वर्तमान की दुर्दशा प्रत्यक्ष दर्शा रही है। अमानुषिक अत्याचार, मूक पशुओं का घात, बाल हत्या, भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं। मनुष्य शील, संयम, दान, पूजादि कर्तव्यों से विमुख हो रहा है। फलतः जीवन में अशान्ति, रोग-शोक, आधि, व्याधि आदि अनेक कष्ट वृद्धिंगत हो रहे हैं। हमें रामराज्य स्थापित करने का प्रयत्न करना चाहिए। अतः राजशासन विरुद्ध आचरण का त्याग कर न्यायोचित, मानवता का पोषक आचरण करना चाहिए ॥ २१॥ MUKAUNASA 18294 . ABASKEARABALACLEARWARNA धर्मानन्द श्रावकाचार -६८
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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