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SABAKAKACHUTERGAVASACARTRAULSERASAKANAGANHERRAZAGA
• अभक्ष्य का लक्षण
जिनके भक्षण करने से, लागे हिंसा दोष ।
उनको अभक्ष्य पदार्थ गिन, मद्यादिक अघ कोष ॥ २२ ॥ अर्थ - अभक्ष्य क्या है ? जिन पदार्थों के भक्षण करने से जिह्वा इन्द्रिय की लोलुपता बढ़ती है, अनन्त जीवों का घात होता है। हिंसा पाप से हिंसक कहलाना पड़े वे सभी पदार्थ अभक्ष्य हैं। ये पदार्थ तीन प्रकार के हैं - अनिष्ट, अनुपसेव्य और पातकवर्द्धक। सभी अभक्ष्य हैं । यहाँ खाद्य पदार्थ वास्तव में उपलक्षण मात्र है, वस्तुतः जिनके सेवन से आत्म स्वभाव का घात होता है, परिणामों में कठोरता, क्रूरता, उन्माद, अविवेकादि दुर्गुण उत्पन्न हों वे चाहें खाद्य हों, बहन ने ओने के से, सौन्दर्य के हों जैसे चमड़े के बेल्ट, बैग, बिस्तर- बंधू, जूते-चप्पल, पर्स, शैम्पू, लिपिस्टिक, नेल पॉलिश, क्रीम, पावडर वगैरह, ब्रेड, बिस्किट, डबल रोटी, नशीली वस्तुएँ यथा - गुटका (पान पराग आदि) च्वींगम, वैजयन्ती, भांग, चरस, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि सभी हिंसादि पापों के कारण अभक्ष्य की ही कोटि में आते हैं ।
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त्याज्य हैं - मद्यपान, अण्डा, मछली भक्षण, आलू, गोभी, शकरकंद, सूरण, रतालू, अरबी, गाजर, मूली, अदरक, प्याज, लहसुन आदि असेव्य, अभक्ष्य हैं। सत्पुरुषों को इनका दूर से ही त्याग करना चाहिए। गरिष्ट, उन्मादक पदार्थ भक्ष्य होने पर खाने योग्य नहीं फिर अभक्ष्य कंदमूल, साबूदाना आदि का तो त्याग अनिवार्य हो ही जाता है ॥ २२ ॥
२२. ओला, घोर बड़ा, निशि भोजन, बहु बीजा, बेंगन, संधान । बड़, पीपल, ऊमर, कठऊमर, पाकर फल, जो होय अजान । कंदमूल, माटी, विष, आमिष, मधु, माखन अरू मदिरा पान । फल अति तुच्छ, तुषार, चलित रस, ये अभक्ष्य बाईस बखान ॥..
SAGACKERETEKLARSTETYAGALAGAGAGLUMCACHETEAUAZUCEN धर्मानन्द श्रावकाचार ~६९