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________________ maERSEccesanassamesKAMSUNuzeiNARANCEmmanueusala • संशय मिथ्यात्व का लक्षण आगम युक्ति प्रमाण भी, मिलते जो शक होय। अहिंसा वा हिंसा धरम, जिमि करे संशय सोय ॥१३ ।। अर्थ - यहाँ संशय मिथ्यात्व का स्वरूप वर्णन करते हैं । जो व्यक्तिमानव आगम में उल्लेख पढ़कर, युक्ति और प्रमाण द्वारा सिद्ध धर्म स्वरूप में शंकाशील होता है उसका यह भाव परिणाम ही संशय मिथ्यात्व है। यथा सर्व ज्ञात प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि पर पीड़ा-हिंसा दुःख की कारण है और दया परिणति अहिंसाधर्म है, सुखदाता है। इस प्रत्यक्ष सिद्ध, आगम युक्ति सिद्ध विषय में भी स्थिर बुद्धि नहीं हो यह सोचना कि अहिंसा धर्म है या हिंसा धर्म है ऐसी प्रतीति होना संशय मिथ्यात्व है ॥ १३ ॥ ता १३. संशय मिथ्यात्व - किं वा भवेन्न वा जैनो, धर्मोऽहिंसादि लक्षण । इति यत्र मतिद्वैध भवेत् - सांशयिकं हि तत् - अर्थ - जैन सिद्धान्त में वर्णित अहिंसा लक्षण वाला धर्म, वास्तव में धर्म है या नहीं है इस तरह सपक्ष-विपक्ष दोनों तरफ बुद्धि का दोलायमान होना संशय मिथ्यात्व है। जैसा कि सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में भी कहा है __ "सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षमार्ग हैं या नहीं। इस प्रकार किसी एक पक्ष को स्वीकार न करना संशय मिथ्यादर्शन है। न्यायदीपिका ग्रन्थ के अनुसार - “विरूद्ध अनेक कोटि स्पर्शीज्ञानं संशयः" विरूद्ध अनके कोटि का अवगाहन करने वाले ज्ञान को संशय कहते हैं - जैसे यह स्थाणु है या पुरूष। इसको संशय मिध्यात्व क्यों कहा? इसके उत्तर में आचार्य कहते हैं - प्रत्यक्षादिप्रमाणागृहीतार्थस्य देशान्तरे कालान्तरे च व्यभिचारसंभवात्, परस्य विरोधिन आप्त वचनस्यापि प्रामाण्यमुपपत्तेरिदमेव-तत्त्वमिति निर्णयितुम.. SasaelaensusilmSEXSLSATRUNSAHumsamdesisemulasase Eानागद पावका -५५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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