SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ X54CANWRACUCUTARUNTUNATARATAMARULARAVANJA • एकान्त मिथ्यात्व का लक्षण अनापेक्ष प्रतिपक्ष जहँ, ही समेत अभिप्राय । यथा सर्वथा नित्य जग, यह एकान्त कहाय ॥ १२ ॥ अर्थ – इस पद्य में एकान्त मिथ्यात्व का स्वरूप बतलाया है। जिनमत में | प्रत्येक पदार्थ या वस्तु तत्त्व को विविधनयों की कसौटी पर कसकर नित्यानित्यात्मक सिद्ध किया है, जैसा कि वस्तु का स्वभाव ही है। सभी नय सापेक्ष रहकर तत्त्व सिद्धि में समर्थ होते हैं। इस सापेक्ष दृष्टि से एक ही तत्त्व नित्य भी है और अनित्य भी। पर ऐसा न मानकर एकान्त से निरपेक्ष दृष्टि से उसे ही नित्य ही है ऐसा कहना (सांख्यमत से) अथवा सर्वथा अनित्य ही है (सौगत मत) कहना एकान्त मिथ्यात्व है ।। १२ ।। १२. सर्वार्थसिद्धि एवं राजवार्तिक ग्रन्थ के अनुसार इदमेवेत्यमेवेति धर्मिधर्मयोरभिनिवेश एकान्तः - "पुरूष एवेदं सर्वम्" इति नित्यएव वा अनित्य एवेति । ___अर्थ - यही है, इसी प्रकार है, धर्म और धर्मी में एकत्व रूप अभिप्राय का एकान्त रूप से होना एकान्त मिथ्यात्व कहलाता है । एकान्त मिथ्यादृष्टि वस्तु को एक धर्मात्मक मानते हैं। जैसे - १. नित्य ही है, २. अनित्य ही है, ३. सत ही है, ४. असत् ही है. ५. एक ही है, ६. अनेक ही है आदि। जो ३६३ पाखण्ड हैं वे एकान्त मिथ्यात्व के ही उदाहरण हैं। संस्कृत टीका में भी इसी प्रकार के उदाहरण मिलते हैं - "तत्र जीवादिवस्तु सर्वथा सदेव, सर्वथा असदेव, एकमेव, सर्वथानेकमेव इत्यादि ।" एकान्त मिथ्यात्व का स्वरूप इन उदाहरणों से इस प्रकार निर्णात होता है - "प्रतिपक्षनिरपेक्षकांताभिप्राय: एकान्तमिथ्यात्वं । अपने प्रतिपक्षी धर्म का सर्वधा निराकरण कर निरपेक्ष एक धर्म को स्वीकार करने वाला सिद्धान्त एकान्त मिथ्यात्व है ।। १२ ।। NASAnikeserchantinuizzeKSAMANANAgraSUMARUNANAurse इनानन्द प्राधकाचा:-~५४
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy