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• परिग्रह परिमाण व्रत के अतिचार
धन-धान्यादिक भेद दश, तिनके युगल विचार । मित से अधिक बढ़ावना हो, परिग्रह अतिचार ॥ ८ ॥
अर्थ धन-धान्य के प्रमाण का अतिक्रम, क्षेत्र वास्तु के प्रमाण का अतिक्रम
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हिरण्य सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रम दासी दास के प्रमाण का अतिक्रम कुप्य
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भांड के प्रमाण का अतिक्रम इस प्रकार परिग्रह परिमाण के पांच अतिचार हैं।
भावार्थ - १. धन - गाय, बैल, हाथी आदि पशु । धान्य- गेहूँ, चना, मूँग, उड़द आदि ।
२. क्षेत्र - धान बोने का खेत, वास्तु- घर आदि ।
३. हिरण्य - चाँदी आदि, सुवर्ण- सोना आदि।
४. दासी नौकरानी आदि, दास - नौकर-चाकर आदि ।
५. कुप्य के दो भेद हैं- क्षाम और कौशेय अर्थात् रेशमी वस्त्र और सूती वस्त्र बरतन आदि इस प्रकार इसके विषय में मेरा इतना ही प्रमाण है इससे अधिक नहीं ऐसा प्रमाण निश्चित करके लोभवश प्रमाण को बढ़ा लेना ये सब परिग्रह परिमाणुव्रत के अतिचार हैं ।
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अधिक वस्तुओं का उपयोग करने से अधिक आरंभ बढ़ता है उससे अधिक हिंसा होती है । अतः जहाँ तक हो व्रत की रक्षा के लिये इन सब अतिचारों को छोड़ना चाहिये ॥ ८ ॥
अर्थ - १. कामसेवन की तीव्र लालसा होना- कुत्ते के समान । २. कामसेवन योग्य अंगों से भिन्न अंगों से काम सेवन करना, ३. अपनी संतान भिन्न अन्य का विवाह करना, ४ . कुमारी या विवाहिता व्यभिचारिणीयों के यहाँ जाना- सम्पर्क रखना और ५. वेश्यादि के साथ लेन-देन रखना, आना-जाना ये पाँच ब्रह्मचर्याणुव्रत के
अतिचार हैं ॥ ७ ॥
SAGAYANAGAGAGAGAGAUAEREAUMEAUREABAGANAEABAKASINAB धर्मानन्द अधकाचार २९९