SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ taxasist AVUSRAANANTARA BACILARANGA २. अनंग क्रीड़ा - उन अंगों में काम सेवन करने का निषेध किया गया है जो मानवों के लिये मैथुन सेवन योग्य नहीं कहे गये हैं। जैसे - हस्त, मुख, कुचादि अंगों में रमण करना अनंग क्रीड़ा अतिचार है। ३. अन ब्याहित से प्यार - जिसका विवाह नहीं हुआ, ऐसी वेश्या कैवारी कन्या अर्थात् जिसका कोई स्वामी नियत नहीं हुआ उससे सम्बन्ध रखना अन ब्याहित से प्यार अतिचार है। १. पर विवाद .. जानने मुतादिना ते जिन्ना के पुत्र-पुत्री आदि का विवाह कराने का व्यवसाय करना दिन-रात उसी से संलग्न रहना पर विवाह अतिचार है। ५. कुलटा गमन - जिसका कोई पुरूष है ऐसी स्त्री के यहाँ आनाजाना अर्थात् व्यभिचारिणी चरित्रहीन स्त्री-पुरूषों की संगति में रहना पनि का चरित्र आदि दूषित हो गया हो तथा पति यदि व्यभिचारी हो गया हो तब भी उसके साथ दाम्पत्य सम्बन्ध बनाये रखना ऐसे कुस्त्री-पुरुष के यहाँ गमन करने रहना कुलटा गमन अतिचार हैं। ब्रह्मचर्य अणुव्रत के संकल्प को पुष्ट करने के लिये कुछ भावनाएँ हैं - काम विकार उत्पन्न करने वाला अश्लील साहित्य नहीं पढ़ना। महिलाओं की ओर विकारी दृष्टि से देखना । पूर्वकल में भोगे हुए भोग-विलास का स्मरण नहीं करना, इन्द्रिय-लालसा उपजाने वाले कामोद्दीपक पदार्थों का सेवन नहीं करना । शरीर का विलासिता पूर्ण श्रृंगार नहीं करना, अंग-प्रदर्शन करने वाले वस्त्र आभूषण नहीं पहनना। __इसी प्रकार के अतिचारों से ब्रह्मचर्य व्रत पालक श्रावकों को अपने व्रत की पूर्ण रक्षार्थ दूर रहना चाहियें ॥७॥ ७. स्मरतीब्रभिनिवेशोऽनसक्रीड़ान्यपरिणयन करणम् । अपरिग्रहीते तरयोर्गमने चेत्वरिकयोः पञ्च ॥ १८६ ॥ पु. सि. aasasranArraneasarsassasarasRNAREASRRISASASRAERese धमनिन्द श्रावकाचार-~२९८
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy