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________________ ZACZSZUASZGAGAGAUZENEAKALAKASAKALACASACTUALAYAYAYA • कुपात्र अपात्र का लक्षण सम्यग्दर्शन से रहित व्रत तपवान कुपात्र । दोऊ बिन हिंसक दुख्यसीन जिद्दी दुष्ट अपात्र ॥ ३० ॥ अर्थ जिनकी आत्मा में सम्यग्दर्शन तो न हो परन्तु जो चारित्र का पालन करते हों वे कुपात्र कहलाते हैं। जो निर्दय होकर प्राणियों को मारता है, परस्त्री का सेवन करता है जो मद्य को पीता है, बात-बात में जिद्दी स्वभाव का है, इन्द्रियों के विषयों का लोलुपी है ऐसे पुरुष को अपात्र कहते हैं ॥ ३० ॥ - • इसका फल दान कुपात्र को देन से फल कुभोग भू होय । । ऊसर बोये बीज सम, अद्य अपात्र फल जोय ॥ ३१ ॥ अर्थ- कुपात्रों को दान देने से मनुष्य कुभोगभूमि में जाता है। जिस प्रकार ऊसर भूमि में बोया गया बीज फलीभूत नहीं होता अर्थात् फल को देने वाला नहीं होता उसी प्रकार अपात्र को दिया गया दान पुण्यरूपी फल को देने वाला नहीं होता है || ३१ ॥ .. अर्थ - जिस प्रकार पृथ्वी में बोया हुआ अत्यन्त छोटा सा भी वट का बीज गहन सघन छाया प्रदान करने वाला विशाल वृक्ष फलता है उसी प्रकार यथा समय - उत्तम, मध्यम, जघन्य सुपात्रों को अल्पदान भी महानफल को प्रदान करता है। अर्थात् दाता स्वर्गादि के मधुर फल पाता है क्रमशः मुक्ति ही पा लेता है। भोग भूमि का वैभव सुलभ प्राप्त होता ही है ॥ २९ ॥ ३०. अणुव्रतादि सम्पन्नं कुपात्रं दर्शनोज्झितं । तानेवाश्नुते दाता कुभोग भूमिभवं सुखम् ॥ अर्थ - सम्यग्दर्शन विहीन अणुव्रत धारी कुपात्र कहलाता है। इसको (कुपात्र) दान देने वाले दाता को कुभोग भूमि जन्य सुख मिलता है अर्थात् बिना श्रम किये मधुर मिट्टी, कोमलाघासादि की प्राप्ति होती है ॥ ३० ॥ CAGAGAGAGAGAGANACACABASABAYAGASACASACACAGAYAGAYASA धर्मानन्द श्रावकाचार २७१
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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