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________________ aurusaRasasasREERSaakaasasasasarasasarasassagex • अतिथि संविभाग का फल रूधिर लम विशिस्त्र को, स्वच्छ करे जलधार। तिमि गृह संचित पाप को, अतिथि करे सब छार॥ ३२ ॥ . अर्थ - जिस प्रकार खून से अपवित्र वस्त्र को निर्मल जल धोकर स्वच्छ कर देता है उसी प्रकार गृह त्यागी देशव्रती, सकलव्रती अतिथियों के लिये दिया गया दान निश्चय करके अपने घर में उपार्जित पाप कर्मों को नष्ट कर देता है।। ३२॥ • व्रतों का उपसंहार अणुव्रत रक्षण निमित जो, पालत सातो शील। स्वर्गादिक सुख तासु टिंग, आते करत न ढील ॥ ३३ ॥ ३१. अपात्रमाहुराचार्याः सम्यक्त्व व्रत वर्जितम् । तहानं निष्फलं प्रोक्तमूषर क्षेत्रभूमि वीजवत् ।। अर्थ - आचार्य कहते हैं कि जो सम्यग्दर्शन और व्रत दोनों से रहित है वह अपात्र है, इस अपात्र को दिया हुआ दान निष्फल-व्यर्थ जाता है। जिस प्रकार अपरबंजर भूमि में बोया उत्तमबीज भी व्यर्थ जाता है-नष्ट हो जाता है। अतः अपात्रदान नही देना चाहिए।॥ ३१॥ ३२. १. गृहकर्मणापि निचितं कर्म विभाटि खलु गृह विमुक्तानाम् । __ अतिथिनां प्रतिपूजा रूधिरमलं धावते वारि ॥ ११४ ।। र. क. श्रा.। अर्थ - जिस प्रकार रक्त से लथ-पथ सने हुए वस्त्र को निर्मल नीर स्वच्छ कर देता है उसी प्रकार गृहस्थ षट्कर्मों के पालन व पंचशूना - १. चक्की, २. चूल्हा, ३. ओखली, ४. बुहारी-झाडू और ५. परेण्डा-पानी रखने का स्थान से उत्पन्न पापों को सत्पात्रों को प्रदत्त दिया दान धो देता है । सत्पात्र दान पापनाशक और पुण्यवर्द्धक कहा है। २. हिंसायाः पर्यायो लोभोऽत्र निरस्यते यतो दाने । तस्मादतिथ वितरणं हिंसा व्युपरमणमेवेष्टम् ॥ १७२ ॥ पु. सि. अर्थ - दान देने में हिंसा का त्याग होता है, इस श्लोक में यही वर्णन किया है।.. SASARIUSAURSasarasRRIERamasasassaRasdaasasex धममिन्द नाचकाचार-२७२
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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