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________________ SARAN ANICAEAAL tastataZHINASABARAUA ACTUARA योग शुद्धि से मुनिन को भोजन शुद्ध कराय ॥२८॥ अर्थ - साधु को आता हुआ देखकर उनका पड़गाहन करें, उच्च स्थान पर बिठावें, पाद प्रक्षालन करें, पूजन करें, मन-वचन-काय इन तीनों की शुद्धि रखें और शुद्ध आहार देवें ॥ २८॥ • इसका फल अल्पदान भी समय पर, यदि सुपात्र को देय । सुखकर वट के बीज सम छाया विभव फलेय ॥ २९ ॥ अर्थ - जिस प्रकार उत्तम क्षेत्र में बोया गया छोटा सा वट का बीज जीवों को समय पर बहुत छाया देता है उसी प्रकार सत्पात्र को समय पर दिया हुआ अल्पदान भी महान फल को देता है ।। २९ ।। २८. प्रतिग्रहोच्चस्थानांघ्रिक्षालनार्चनतो विदुः। योगान्नशुद्धिश्च विधीन्नवादर विशेषतान् ।। अर्थ - श्रावक नवधाभक्ति से मुनिराज व आर्यिका माताओं तो आहारदान देता है। वे इस प्रकार हैं - १. पड़गाहन करना, २, उच्चासन प्रदान करना, ३. चरण प्रक्षालन करना-धोना, ४. पूजा करना, ५. मन शुद्धि, ६. वचन शुद्धि, ७. काय शुद्धि, ८. अन्न या आहार शुद्धि मोलना तथा, ९. विशेष आदर-नमस्कार करना । ये नव प्रकार नवधाभक्ति जानना चाहिए ॥२८॥ २९. सन्नरे योजितं कार्यं धनं च शतधा भवेत् । सुक्षेत्रे चार्पितं यद्वत्सस्यं तद्वदसंशयं । १. अर्थ - उत्तम - उपजाऊ भूमि में बोया हुआ बीज जिस प्रकार हजार गुणा फलदेता है उसी प्रकार सज्जन पुरुष को प्रदत्त कार्य तथा धन भी सैंकड़ों गुणित फल प्रदान करता है। २. क्षितिगतमिव क्ट बीजं पात्रगत दानमल्पमपि काले । फलतिच्छाया विभवं, बहुफलमिष्टं शरीरभृताम् ।।११६ ॥ र. क. पा. BAERRAHamasasRERAKSarastrawasasaRRERESERIASasasarsa धमलिन्द श्रावकाथार - २७०
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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