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________________ HABATANASAsanaAXARARANASANATATAKARAANANAKATA सकलसंयमी आचार्य, उपाध्याय, साधु वे उत्तम पात्र कहे जाते हैं। जिनके एक देश चारित्र हो ऐसे पंचम गुण स्थान वर्ती श्रावक मध्यम पात्र कहे जाते हैं। अविरत सम्यग्दृष्टि श्रावक जघन्य पात्र है। जो मनुष्य श्रावक के व्रतों को तो पालते हैं परन्तु देव, शास्त्र, गुरु में श्रद्धा नहीं रखते वे सब कुपात्र हैं। जो सम्यग्दर्शन और चारित्र दोनों से रहित हों अर्थात् जैनों से भिन्न जितने भी हैं वे सब अपात्र हैं॥२१॥ • उत्तम दान सुगुण ध्यान की वृद्धि का साधक उत्तमदान। भोजन विद्या औषधी, चौथा अभयपिछान ॥ २२॥ अर्थ - संसार में यदि हमको अच्छे गुणों की प्राप्ति करना है और उन गुणों से हमारे ज्ञान ध्यान की वृद्धि हो उसके लिए हमको दान देना चाहिए। वह दान चार प्रकार का है। १. आहार दान, २. ज्ञान दान, ३. औषध दान, ४. अभय दान ।। २२ ।। २१. उत्कृष्ट पात्रमनगार मणुव्रताढचं मध्यमव्रतेन रहितं सुदृशं जघन्यं । निर्दर्शितं व्रतनिकाय युतं कुपात्रं, युग्मोज्झितं नरमपात्रभिदं हि विद्धिः॥ अर्थ - अनगार-निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज उत्तम पात्र हैं, अणुव्रतधारी, क्षुल्लकक्षुल्लिका मध्यम पात्र हैं। व्रत रहित सम्यग्दृष्टि श्रावक जघन्य पात्र है। सम्यक्त्वरहित व्रत सहित कुपात्र हैं और सम्यग्दर्शन तथा व्रत दोनों से रहित अपात्र कहलाता है। श्रावकों को पात्रभेद ज्ञातकर दान देना चाहिए ॥ २१ ॥ २२. दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणो। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विक विदुः॥ अर्थ - १. दान देना चाहिए क्योकि यह श्रावक का कर्तव्य है। परन्तु कैसे देना ? देश, काल-ऋतु व पात्र की स्थिति के अनुसार उनके अनुकूल अर्थात् पात्र ... NASAVARANASAN SASANA ATALAR NAKALARASZKABANATAKANA धममिदद वाधकाचार-२६५
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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