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आहार दानभू वे गुणी सुपात्र को नित दे भोजनदान । भोगभूमि स्वर्गादि सुख इस जग लहे यशमान ॥ २३ ॥
अर्थ - जो गृहस्थ इस भूमि पर प्रतिदिन सुपात्र को आहार दान देता है उस गृहस्थ को उत्तम भोग भूमि के सुख प्राप्त होते हैं, फिर वहाँ से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और इस जगत में यश भी मिलता है ।। २३ ।।
...की प्रकृति, अवस्था, स्थिति का परिक्षण कर तदनुसार पदार्थ देना चाहिए। वही सात्विक दान होगा।
२. “अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गोदानं ।। मो. शा. सू. ३८ अ. ७ ।
अर्थ - उपकार करने वाले अपने धन को प्रदान करना देना दान कहलाता है। अभिप्राय है कि जिन वस्तुओं के दान द्वारा दाता और पात्र दोनों का उपकार हो, आत्मकल्याण में सहायक हो वही यथार्थ दान है।
३. अभीतिरभयादाहुराहाराद्भोगवान् भवेत् । आरोग्यमौषधाज्झेयं शास्त्राद्धि श्रुतकेवली ॥
अर्थ - अभयदान देने से निर्भयता प्राप्त होती है, योग्य शुद्ध प्रासुक आहार दान देने का फल भोगोपभोग की सामग्री का अधिकारी होता है, प्रासुक योग्य औषध दान दाता को नीरोग शरीर प्राप्त होगा अर्थात् आरोग्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार शास्त्रदानज्ञानदान से श्रुतकेवली होता है अर्थात् ज्ञानावरणी कर्म का प्रकृष्ट क्षयोपशम प्राप्त होता है। इस प्रकार चतुर्विध संघ को चार प्रकार के दान का फल चतुर्विध प्राप्त होता है। अतः दान भक्ति श्रद्धा से अवश्य देना चाहिए। २२।।
२३. तुरगशत सहस्रं गोकुलं भूमिदानं, कनक रजत पात्रं मेदिनी सागरांता। सुर युवति समाना कोटिकन्या प्रदानं, न भवति समानमन्नदानात्प्रधानम् ।।
अर्थ - आहार दान की महिमा बताते हुए आचार्य कहते हैं, यदि कोई लाखो अश्व व गायों का दान दे, सागरांत भूमि दान में दे दे, सोने-रजत के अनेकों पात्र प्रदान.. SWERSARASASRSarawasasanasamanarasarasasarasARANASI
धर्मानन्द श्रावकाचार-२६६