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wzearSGARMATMISearSAMASTERSamasamasiKSASARANASI इसका अर्थमोहोदय से जीव की, जिसमें ममता होय।
संग परिग्रह मूरछा, ग्रंथ कहावे सोय॥ २४ ॥
अर्थ - मोहनीय कर्म के उदय से जिसके प्रति ममतारूप परिणाम उत्पन्न होता है उसे ग्रन्थ में संग्रह, परिग्रह अथवा मूर्छा बतलाया है। ग्रन्थ, संग, परिग्रह, मूर्छा ये सब पर्यायवाची शब्द हैं।
भावार्थ - धन-धान्यादि परिग्रह तभी परिग्रह कहा जाता है जबकि उसमें ममत्व परिणाम हो। बिना ममत्व परिणाम के किसी का कुछ परिग्रह नहीं कहा जाता। जैसे - कोई मुनिराज ध्यानस्थ बैठे हैं उनके समीप कोई बहुत सारा धन रख जाता है तो वह धन उनका परिग्रह नहीं कहा जा सकता। क्योकि उनके परिणामों में उस धन के प्रति रंच मात्र भी ममत्व नहीं है। इसीलिए आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है - “मूर्छा परिग्रहः।" अ.-७/सब. १७
मूर्छा को ही परिग्रह बतलाया है। अथवा गाय-भैंस मणि मोती आदि चेतन-अचेतन बाह्य उपधि, तथा रागादि रूप अभ्यन्तर उपाधि का संरक्षण, अर्जन और संस्कार आदि रूप व्यवहार मूर्छा है।
...कुर्यात्परिग्रह त्यागं स्थूलं तत्पंचमं व्रतम् ॥ अर्थ - यहाँ पाँचवें अणुव्रत परिग्रह परिमाण व्रत का लक्षण बताया है। आचार्य कहते हैं धन्य-धान्य आदि सम्पदा-परिग्रह चाहे चेतन, अचेतन या मिश्र हो उसकी सीमा कर अन्य बचे परिग्रह में निस्पृह होना वाञ्छा नहीं करना परिग्रह परिमाण नामका पाँचवां अणुव्रत कहलाता है।
२. परिग्रह सामग्री तीन प्रकार की है - १. चेतन यथा दास-दासी, गौ महिष आदि, पुत्र-कलत्रादि, २. अचेतन - सोना चाँदी, मकान-दुकानादि तथा ३. मिश्र वस्त्राभूषण सहित सन्तानादि। इन तीनों प्रकार के पदार्थों का अपनी इच्छानुसार प्रमाण कर शेष बचे में ममत्व-मूर्छाभाव का त्याग करना इच्छाकृत प्रमाण या परिग्रह स्थागाणुव्रत कहलाता है।। २३॥ wasakasarakacesasaraswSAAMGEReasoncessagesasasasara
धर्मानन्द श्रावकाचार-२३०