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________________ 3 ななせ नपुंसक बनाया जाना या नपुंसक उत्पन्न होना ये सब मैथुन सेवन करने का फल है इसलिए उत्तम पुरूषों को परस्त्री सेवन का त्यागकर अपनी ही स्त्री में सन्तोष रखने वाला बनना चाहिए || २२ || • परिग्रह परिमाण का लक्षण दशविध धन-धान्यादि का, करि परिग्रह परिमान । अधिक चाह का त्याग ही, पंचम अणुव्रत जान ॥ २३ ॥ - - अर्थ- क्षेत्र वास्तु, चाँदी सुवर्ण, धन-धान्य, दासी दास, वस्त्र और बर्तन अथवा क्षेत्र (खेत) - मकान, द्विपद (दासीदास), चतुष्पद (पशु आदि), शयनासन वाहन, वस्त्र और बर्तन इस दस प्रकार के परिग्रह का परिमाण कर उससे अधिक की इच्छा नहीं करना, मन, वचन, काय से अधिक परिग्रह रखने का त्याग कर देना परिग्रह परिमाण नामका पाँचवाँ अणुव्रत कहलाता है। इच्छाओं के सीमित या नियन्त्रित हो जाने से इसे इच्छा परिमाणव्रत भी कहा जाता है ।। २३ ॥ - - U २२. यद्वेदरागयोगान् मैथुनमभिधीयते तदब्रह्म । अवतरति तत्र हिंसा जीववधस्य सर्वत्र सद्भावात् । २. स्त्री पुंसयोः परस्पर गात्रोपरिश्लेषे रागपरिणामो मैथुनम् ! अर्थ - वेद कषाय राग की कारण हैं, इसके उदय होने पर जीव मैथुन सेवन करता है अर्थात् पुरूष स्त्री संभोग करता है इसे मैथुन कहते हैं यही अब्रह्म है। इसके सेवन से जीवों का घात होता है अतः सदा हिंसा होती है। २. स्त्री और पुरुष का रागोदय से परस्पर शरीर अवयवों का यात अपघात - मर्दन होने का परिणाम मैथुन है - अब्रह्म है ॥ २२ ॥ २३. १. धन-धान्यादि ग्रन्थं परिमाय ततोऽधिकेषु निःस्पृहता । परिमित परिग्रहः स्यादिच्छा परिमाणनामापि ।। ६१ ।। र. क. श्रा । २. चेतनेतर वस्तूनां यत्प्रमाणं निजेच्छया ।... MASTERMASABABABABABACACABACALACACAENEACRETEREAGASA धमनिन्द श्रयकाचार २२९
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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