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________________ SAGATAVAYACAKAGAYANANAGALA ZZASASASTER रागभावरूप उत्तेजना से मिथुन अर्थात् जोड़े का सहवास होना (मिथुन) अब्रह्म कहलाता है। अब्रह्म में हिंसा का सब स्थानों में सद्भाव है। बिना हिंसा के अब्रह्म होता ही नहीं है । यह तो हुआ पहला कारण । परस्त्री सेवन करना यह हिंसा का दूसरा कारण है । अह्म में हिंसा कई प्रकार से घटित होती है। स्त्री के योनि, नाभि, कुच, काँख आदि स्थानों में सम्मूर्छन पञ्चेन्द्रिय जीव सर्वदा उत्पन्न होते रहते हैं और मैथुन में उनके द्रव्यप्राणों का घात अवश्य होता है। आचार्य उमास्वामी श्रावकाचार में परस्त्री सेवन करने से प्राणियों की क्या स्थिति होती है और उसका क्या फल प्राप्त होता है, वह बतलाया हैपररामांचिते चित्ते न धर्मस्थिति रोगिनाम् । हिमानी कलिते देशे पद्मोत्पत्तिः कुतस्तनी ॥ ३६८ ॥ उ. श्री. अर्थ - जिन लोगों के हृदय में परस्त्री का निवास रहता है उन पुरूषों के हृदय में धर्म की स्थिति कभी नहीं हो सकती । भला जिस देश में बर्फ पड़ गया है उस देश में कमलों की स्थिति कैसे रह सकती है। जिनके हृदय में रात-दिन पस्त्री नृत्य किया करती है उनके समीप उत्तम लक्ष्मी कभी नहीं आ सकती। इसीलिए किसी ने कहा है - "परनारी पैनी छुरी, तीन ठौर से खाय । धन छीने यौवन हरे, मरे नरक ले जाय ।। " दुर्भगत्वं दरिद्रत्वं तिर्यक्त्वं जननिंद्यताम् । लभन्तेऽन्यनितम्बिन्यवलम्बनविलंबिताः ॥ ३७९ ।। उ. श्री. अर्थ- जो पुरुष परस्त्री सेवन के लंपटी है वे कुरुप होते हैं, दरिद्री होते हैं, तिर्यञ्च होते हैं और तीन लोक में निंदनीय माने जाते हैं। उत्तम पुरुषों को समझना चाहिए कि कुरूपी होना, लिंग का छेदा जाना, CARACALACACHEASAVAASASANARESHEER GETALÀ ES DE TAGETSSEMEN धर्मानन्द श्रावकाचार २२८
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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