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• इसका शब्दार्थ
ब्रह्म नाम है आत्म का चर्य रमण कहलाय । पाप वासना त्याग कर, निज वीरज उपजाय ॥२१॥
अर्थ - "ब्रह्म" और "चर्य" इन दो शब्दों से ब्रह्मचर्य शब्द की निष्यत्ति हुई है। "ब्रह्म" शब्द का अर्थ है ज्ञान स्वरूप आत्मा । उस आत्मा में “चर्य" आचरण करना. लीन होना. तल्लीन होना ब्रह्मचर्य है। इसके असिधाराव्रत, शीलव्रत आदि अनेक नाम हैं। पाप-वासनाओं का त्याग कर निज के वीर्य का रक्षण करना चाहिए।
भावार्थ - प्राचीन मनीषियों एवं दार्शनिकों ने "ब्रह्म' शब्द के अनेक अर्थ किये हैं। जैसे ईश्वर, ज्ञान का स्रोत, जिनवाणी और वीर्य आदि....! "चर्य" शब्द के भी अनेक अर्थ किये गये हैं। जैसे - उपासना, उपार्जन, रक्षण और सदुपयोगादि ....। इस प्रकार ब्रह्मचर्य शब्द के ईश्वर की उपासना, ज्ञान का उपार्जन, वीर्य का रक्षण तथा वीर्य का सदुपयोग आदि अनेक अर्थ प्राप्त होते हैं। मन को वश में करना इन्द्रिय निग्रह है और इन्द्रिय तथा वासना का निग्रह करना ब्रह्मचर्य शब्द का वास्तविक अर्थ है।। २१ ।। • परस्त्री सेवन में हिंसा
वेदोदय प्रावल्य से उपजत मैथुन कर्म । हिंसा कारण द्वितीय पुनि, परत्रिय गमन अधर्म ॥ २२ ॥ अर्थ - पुरुष, स्त्री और नपुंसक ये तीन वेद हैं । इन तीन वेदों की
२१. ब्रह्म कहते हैं आत्मा को । ब्रह्मणि आत्मनि चरतीति ब्रह्मचर्यम् ।" अर्थ - ब्रह्म का अर्थ है आत्मा, अपने आत्म स्वरूप में या स्वभाव में लीन रहना, विचरण करना ब्रह्मचर्य कहलाता है ।। २१ ।। JANARMEMBREAexsaagaragwaSABAERemsamanaresamanaKNAMANA
धर्मानन्द श्रावकाचार-२२७