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SURUSurnasamiARomsarsareeutasexsaasaramaanaaasana • असत्य से हिंसा
इन भेटनि में मिल रहा, वह कषाय दु:ख दान। इससे मिथ्या भेद सब, हिंसा हेतु पिछान ॥ १६ ॥
अर्थ - निन्दित, सावद्य एवं अप्रिय वचन कषाय भावों के वशीभूत होकर ही बोला जाता है इसलिये वे सभी बचन हिंसा में गर्भित हैं। हिंसा के लक्षण से जितने भी कार्य कषाय एवं प्रमादयोग से दूसरे के तथा अपने प्राणों का घात करने वाले, पीड़ा पहुँचाने वाले सिद्ध होते हैं वे सब हिंसा के कारण हेतु है ऐसा समझना चाहिये । अभिप्राय यह है कि असत्य भी हिंसा की ही पर्याय है।
आचार्य उमास्वामी श्रावकाचार में असत्य वचन बोलने वाले को क्या फल मिलता है उसका निरूपण किया है -
कुरूपत्व लघीयत्व-निंद्यत्वादि फलं द्रुतम् । विज्ञाय वितंथ तथ्यवादी तत्क्षणतस्त्यजेत् ॥ ३४६ ।। उ. श्रा.
अर्थ - यह जीव मिथ्याभाषण करने के फल से कुरूप होता है, अत्यन्त गरीब होता है और निंद्य होता है। मिथ्या भाषण का ऐसा फल समझकर सत्य वचन बोलने वालों को इस मिथ्या भाषण का उसी क्षण में त्याग कर देना चाहिये ।। १६॥
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१६. सर्वस्मिन्लप्यस्मिन् प्रमत्त योगैक हेतु कथनं यत् ।
अनृत वचनेऽपि तस्मान्नियतं हिंसा समवतरति ॥ ९९ ।। पु. सि. अर्थ - उपर्युक्त समस्त असत्य वचन प्रयोग में प्रमाद योग गर्भित है अर्थात् प्रमादवशी ही मनुष्य इस प्रकार भाषण करता है। इससे स्पट सिद्ध होता है कि यह असत्यभाषण तो है ही, हिंसा पाप के भी कारण हैं। उभय पाप के भय से इन वचनों का त्याग करना श्रेयस्कर है।।१६।। swamaATARATusMATURanamasalusasarayasamaARMER
धर्मानन्द श्रावकाचार-२२०