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________________ REATREATREASRETATEMEGSarasanasauraKANGRArpanaxx इस विधि अधेक वचन सब, सावध मांहि गिनेउ॥ १४ ॥ अर्थ - इसके कान-नाक-पूंछ-जीभ आदि छेद डालो, इसकी गर्दन, जिह्वा, हाथ, पाँव काट डालो, इसको जान से मार दो, इसको पकड़ कर खींचो, इस प्रकार चोरी करो, बलात्कार करो, इसका धन लूट लो, इसका अपहरण करो इस प्रसार जो वचन हैंडा से पाणियों के साथ-हिमा के कार्य होते हैं। अतः ऐसे सावध असत्य वचन का श्रावक को नहीं बोलना चाहिये ।। १४ ॥ • अप्रिय वचन (असत्य) अरूचि भीतिकर खेदकर, वैर-शौक कहलाय । इसविधि अन्य भी दुःखद वच, सब अप्रिय कहलाय॥१५ ।। अर्थ - हृदय में आकुलता उत्पन्न करने वाला, भय उत्पन्न करने वाला, चित्त में खेद पैदा करने वाला, आपस में कलह-शत्रुता उत्पन्न करने वाला, शोक पैदा करने वाला और भी जो दूसरे जीवों को संताप-कष्ट पहुंचाने वाले वह समस्त अप्रिय कटुक असत्य वचन जानना चाहिये ।। १५ ॥ १४. छेदन-भेदन मारण कर्षण वाणिज्य चौर्यवचनादि। तत्सावधं यस्मात्प्राणिवधाद्याः प्रवर्तन्ते ।। ९७ ॥ अर्थ - छेदना-छेदकरो-नाक-कानादि, भेदना - काटो-मारो, मारण-प्राणनाश करने वाले वचन, खेती, जोतना, व्यापार करना, चोरी करना आदि सम्बन्धी वचन सावध वचन हैं। क्योंकि ये प्राणी बधादि करने वाले हैं। इस प्रकार के वचन त्यागना चाहिए।॥ १४॥ १५. अरतिकर भीतिकरं खेदकर वैरशोक-कलहकरम् । ___यदपरमपि तापकर परस्य तत्सर्वमप्रियं ज्ञेयम् ।। ९८ ।। अर्थ - पर के चित्त में व्याकुलताजनक, धैर्य का नाश करने वाले, भयोत्पादक, शोक उत्पन्न करने वाले, विरोध वैरभावोत्पादक, कलह-झगड़ा-विसंवाद करने वाले तथा अन्य भी इसी प्रकार के वचनों को अप्रिय वचन समझ कर त्याग करना चाहिए ।। १५ ।। HRIRasERRIERanatantansaasasursanasamacasamanara धर्मानन्द प्रावकाचार-२१९
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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