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________________ MaaKATERTURasansex x siksattamaesaxiKATARKaramarsinik • सत्य का लक्षण झूठ न बोले निज कभी, पर से भी न बुलवाय। पर दुःखकर सच ही न कहि, सत्य अणुव्रत पाय ॥७॥ अर्थ - जिन अप्रशस्त वचनों के कहने पर राजा या समाज या शासन आदि से दण्ड आदि प्राप्त होते हों उन्हें त्याग देने को सत्याणुव्रत कहते हैं । सत्याणुव्रत का धारी परनिन्दा, चुगली से बचता है, अप्रिय, कठोर एवं निंद्य वचन न बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है, साथ ही ऐसा सत्य भी नहीं बोलता या बुलवाता जिससे दूसरे प्राणियों का घात होता हो ऐसा सम्भाषण जो अपनी आत्मा के लिए आपत्ति का कारण हो तथा अन्य प्राणियों को भी संकटों से आक्रान्त करता है, वह सर्वथा त्यागने योग्य है। गृहस्थ जीवन में असत्य का सम्पूर्ण त्याग नहीं किया जा सकता है अतः स्थूल झूठ का त्याग ही सत्याणुव्रत का अभिप्राय है। आत्मा के लिए जो कल्याणकारी हित-मित-प्रिय वचन हैं वही सत्य वचन कहलाते हैं। सत्य अणुव्रत में जिस झूठ का त्याग कराया गया है, अथवा जिस सत्य के प्रयोग की अनुशंसा की गई है, वह लोक हित और अहिंसा का साधक है। इसलिए इस व्रत की परिभाषा में हितकर होना सत्य की पहली शर्त है। उसका मित होना, संक्षिप्त होना इसलिए आवश्यक है कि इससे यह तत्काल ग्राह्य होता है। वह वचन प्रिय भी हो ऐसा इसलिए जरूरी है कि इसके बिना उसे दूसरों तक पहुंचाना सम्भव नहीं है । अतः यह अनिवार्य है कि सत्य को हितमित और प्रिय होना चाहिये । बचन को अभिप्राय से तौलकर ही उसे सच या झूठ के वर्गश्रेणी में रखा जा सकता है। एक संत किसी वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहे थे। तभी एक हिरण चौकड़ी भरता हुआ उनके सामने से निकल गया । यह देखकर मुनिराज खड़े होकर *2XANADURARARAUAKARUNARATA N धनियर श्रावकाचार-२१२
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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