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TARAKHANA
ध्यान करने लगे। इतने में एक शिकारी दौड़ता हुआ आया और मुनिराज से पूछा क्या आपने हिरण को देखा ? वह किस दिशा की ओर गया है ?"
मुनिराज ने उत्तर दिया जब से में खड़ा हूँ तब से यहाँ से कोई हिरण नहीं गया । यद्यपि मुनिराज विराजे थे परन्तु यहाँ पर असत्य वचन रक्षार्थ खड़े हो गये क्योंकि यहाँ एक प्राणी के जीवन-मरण का प्रश्न था । यदि वास्तविकता बता देते हैं तो हिरण के मारे जाने की संभावना है। यदि वे शिकारी को बताते हैं तो वह उस दिशा में भागेगा और मृग के प्राण हर लेगा। समय का सत्य और हित प्रेरित सत्य यही था कि यहाँ यथार्थ को उजागर न किया जाय । सत्याणुव्रत का यही प्रयोजन है।
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सत्याणुव्रत के पांच अतिचार हैं - १. परिवाद, २. रहोभ्याख्यान, ३. पैशून्य, ४. कूटलेखक्रिया और ५. न्यासापहार । इनका सविस्तार विवेचन रत्नकरण्ड श्रावकाचार में बतलाया है वहाँ से जान लेना चाहिये ।
सत्याणुव्रत का फल आचार्य उमास्वामी ने अपने श्रावकाचार में इस प्रकार बताया है -
धनदेवेन सम्प्राप्तं जिनदेवेन चापरम् ।
फलं त्यागापरभवं परमं सत्यसंभवम् || ३५५ ॥ उ. श्री.
अर्थ - धनदेव ने सत्य वचन कह कर उत्तम फल सद्गति प्राप्त की थी और जिनदेव ने झूठ बोलकर दुर्गति का फल प्राप्त किया था । "कथाकोष" ग्रन्थ से इनकी कथा पढ़कर अपने जीवन में सत्याणुव्रत का पालन आचरण करना चाहिये ॥ ७ ॥
७. १. स्थूलमलीकं न वदति न परान् वादयति सत्यमपि विपदे । यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थूलमृषावाद वैरमणं ॥ (र. क. श्रा . )
२. सभ्यैः पृष्टोऽपि न ब्रूयाद्गचादेह्यलीकम् वचः ।
भयाद् द्वेषाद् गुरुस्नेहात्स्थूलं सत्यमिदं व्रतम् ॥ ...
SAGAKARASARANACACACACACALAGAGAGAGAGAGASARANASANAKA धर्मानन्द श्रावकाचार २१३