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अर्थ - चतुर्थ अध्याय का सारांश अंतिम दोहे में गुरूदेव प्रस्तुत करते हुए यहाँ बताते हैं कि मैंने इस अध्याय में पाक्षिक श्रावक की विधि, उसकी चर्या धर्मानुराग का वर्णन आगम का आधार लेकर किया है जो भव्य जीव सुख की इच्छा रखता है उसे उस मार्ग पर चलने का प्रयत्न करना चाहिए । क्योंकि ज्ञान का फल चारित्र है । चारित्र के बिना मात्र अक्षर ज्ञान से कभी जीवन सुखी बन नहीं सकता है ।। ३७ ।।
* इति चतुर्थ अध्याय
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धर्मानन्द श्रावकाचार-१९९