________________
SANABANANAN
• सामान्य हिंसा का निषेध -
झट घट फट से चटक सम, जीव खारफटिक सिद्धान्त यह, मत वरतो दुखदाय ॥ २६ ॥
KEZETETEAUTETUTETEKSASAERBAGA
मुक्त
हो जाय ।
अर्थ - घट के फूटने से चिड़ियाँ के मोक्ष के समान जो मोक्ष का स्वरूप 'मानते हैं ऐसे खारपटिक मत का खण्डन करते हुए आचार्य श्री कहते हैं कि उक्त प्रकार की मान्यता आत्म वञ्चना है, दुःख का कारण है उनसे अपनी रक्षा करो, मोक्ष के स्वरूप को आगम से समझने की चेष्टा करो
|
भावार्थ - खारपटक नाम का एक मत है उसका कहना है कि जैसे एक चिड़िया जब तक घड़े में बन्द है तब तक कैद में है । घड़े के फूटने से वह आजाद होकर उड़ जाती है। उसी प्रकार यह आत्मा शरीर में कैद है। शरीर के फोड़ देने से आत्मा मुक्त हो जाता है । उन्होंने ऐसा सिद्धान्त केवल लोभ वश बनाया है। वे शिष्यों को इस प्रकार शिक्षा देकर उनका धन योजना पूर्वक लूटते हैं। उनका धन लेकर उन्हें मोक्ष के लिए नदी इत्यादि में धक्का देकर मार डालते हैं । अतः आचार्य भव्य जीवों को कहते हैं कि ऐसे पापियों के जाल में फँसकर अपनी हिंसा नहीं होने देना चाहिए ॥ २६ ॥
२६. धनलवपिपासितानां विनेयविश्वासनाय दर्शयताम् ।
झटितिघटचटकमोक्षं श्रद्धेयं नैव खारपटिकानाम् ॥। ८८ पुरुषार्थ ॥
अर्थ - थोड़े से धन के प्यासे और शिष्यों को विश्वास उत्पन्न करने के लिए नाना प्रकार की रीतियाँ दिखलाने वाले खारपरिकों का मत - "जैसे घड़ा फूटने पर उसमें कैद चिड़ियाँ मुक्त हो जाती है उसी प्रकार शरीर के नष्ट होने पर आत्मा मुक्त हो जाता है" सर्वथा गलत है। उन्होंने ऐसा सिद्धान्त केवल लोभ वश बनाया है। धन लूटकर नदी में धक्का देकर मार डालना घोर हिंसा है, पाप है, दुर्गति का कारण है ॥ २६ ॥
SASTERACRESCAVABAGAYAGAEFELUASABASABABAYAGARASAER धर्मानन्द श्रावकाचार १४२