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________________ HAMARUTKMARKSarasursdMUSamartAsanasalsasaramzaareesex प्रमाद और कषाय रूप परिणाम से स्व और पर दोनों के प्राणों का घात होता है। स्व पर पीड़ा लक्षण वाली हिंसा में कषाय और प्रमाद ही मुख्य कारण है। अतः कारण में कार्य का उपचार कर यह कहा है कि जहाँ-जहाँ प्रमाद और कषाय है वहाँ-वहाँ हिंसा का सद्भाव भी होता ही है। प्रमाद और कषाय से संपृक्त जीव की जो भी परिणति है वह सब हिंसा ही है॥३॥ कषायों का भेद-प्रभेद पूर्वक कथन करते हुए सबसे पहले उनका नाम बताते हैं - • कषायों के नाम चउ चउविध क्रोधादि चउ, हास्य ग्लानि भयशोक। रति अरति त्रय वेद मिलि, ये कषाय अघ ओक ॥४॥ दोहा नं. ६८ में कषाय के २५ भेदों का निर्देश किया है तद्नुसार ही यह कथन है। अनन्तानुबन्धी संबंधी ४ कषाय, अप्रत्याख्यानावरण कषाय संबंधी ४ भेद प्रत्याख्यानावरण संबंधी ४ भेद और संज्वलन संबंधी ४ भेद तथा ९ नोकषाय के योग से यह पापोत्पादक कषाय २५ भेद वाला है। ओक का अर्थ होता है ओघ या सामान्य रूप कथन || ४ ॥ .. ३. कषत्यामानमिति कषायः - सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रन्थों में कषाय का अर्थ इस प्रकार मिलता है - जो आत्मा को करता है दुःखी करता है उसे कषाय कहते हैं। और भी - “कपति हिनस्ति आत्मानं कुगति प्रापणादिति कषायः" जो कुगति की प्राप्ति करावे ऐसे क्रोधादि विकार भाव कषाय हैं। आत्म गुणों का घात करते हैं इसलिए इन्हें कषाय कहा गया है ॥ ३ ॥ ४. “दर्शनचारित्रमोहनीयाकषाय कषायवेदनीयाख्यास्त्रि द्विनवषोडशभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायौ हास्यरत्यरति शोकभयजुगुप्सास्त्रीपुनपुंसक वेदाः अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकश: क्रोधमानमाया लोभाः।" त. सू. अ.८, सूत्र -९।... KasRSReasursasatharumauRISGARETMASSANASANTMASANATARA धमनिन्द श्रावकाचार-११८
SR No.090137
Book TitleDharmanand Shravakachar
Original Sutra AuthorMahavirkirti Acharya
AuthorVijayamati Mata
PublisherSakal Digambar Jain Samaj Udaipur
Publication Year
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Principle
File Size6 MB
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