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भद्रबाहु संहिता
सात प्रकार स्वप्नोंमें पहलेके पाँच प्रकारके स्वप्न प्रायः निष्फल होते हैं, वस्तुतः भाविक स्वप्न का फल ही सत्य होता है। रात्रिके प्रहरके अनुसार स्वप्न का फल – रात्रिके पहले प्रहरमें देखे गये स्वप्न एक वर्षमें, दूसरे प्रहरमें देखे गये स्वप्न आठ महीनेमें [ चन्द्रसेन मुनिके मत से ७ महीने में], तीसरे प्रहरमें देखे गये स्वप्न तीन महीने में, चौथे प्रहरमें देखे गये स्वप्न एक महीनेमें, [ वराहमिहिर के मत से १६ दिन] ब्रह्म मुहूर्त्त [उषाकाल] में देखे गये स्वप्न दस दिनमें और प्रातः काल सूर्योदयसे कुछ पूर्व देखे गये स्वप्न अतिशीघ्र शुभाशुभ फल देते हैं। अब जैनाजैन ज्योतिषिशास्त्रके आधार पर कुछ स्वप्नोंका फल उद्धृत किया जाता है
अगुरु — जैनाचार्य भद्रबाहुके मत से — काले रंगका अगुरु देखने से निःसन्देह अर्थलाभ होता है। जैनाचार्य सेन मुनिके मत से सुख मिलता है । वराहमिहिरके मत से धन लाभ के साथ स्त्री लाभ भी होता है। बृहस्पतिके मत से - - इष्ट मित्रोंके दर्शन और आचार्य मयूख एवं दैवज्ञवर्य गणपतिके मत से अर्थ लाभके लिए विदेश गमन होता है।
अग्नि - जैनाचार्य चन्द्रसेन मुनिके मत से धूम युक्त अग्नि देखने से उत्तम कान्ति वराह मिहिर और मार्कण्डेय के मत से प्रज्वलित अग्नि देखने से कार्यसिद्धि, दैवज्ञगणपतिके मत से अग्नि भक्षण करना देखने से भूमि लाभके साथ स्त्रीरत्नकी प्राप्ति और बृहस्पतिके मत से जाज्वल्यमान अग्नि देखने से कल्याण होता है।
अग्नि दग्ध - जो मनुष्य आसन, शय्या, पान और वाहन पर स्वयं स्थित होकर अपने शरीरको अग्नि दग्ध होते हुए देखे तथा मतान्तरसे अन्य को जलता हुआ देखे और तत्क्षण जाग उठे, तो उसे धन-धान्य की प्राप्ति होती है। अग्नि में जलकर मृत्यु देखने से रोगी पुरुष की मृत्यु और स्वस्थ पुरुष बीमार पड़ता है। गृह अथवा दूसरी वस्तु की जलते हुए देखना शुभ है। अनि लाभ भी शुभ है ।
वराह-1
ह - मिहिर के मत से
अन्न अन्न देखने से अर्थ लाभ और सन्तानकी प्राप्ति होती है। आचार्य चन्द्रसेनके मत से श्वेत अन्न देखने से इष्ट मित्रोंकी प्राप्ति, लाल अन्न देखने से रोग, पीला अनाज देखने से हर्ष और कृष्ण अन्न देखने से मृत्यु होती है ।
अलंकार - अलंकार देखना शुभ है, परन्तु पहनना कष्टप्रद होता है ।