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षड़विंशतितमोऽध्यायः
बहुत-से मरण सूचक स्वप्न भी होते हैं, रोगोत्पादक स्वप्न भी होते हैं इष्टनिष्ट रूप फल देने वाले भी स्वप होते है। ज्ञानी को सबका अध्ययन कर ही स्वप्नोंका फल कहना चाहिये।
जैसे स्वप्नमें रक्त उल्टी यह सिद्ध करती है, कि स्वप्न दृष्ट्राकी शीघ्र ही मृत्यु होने वाली है। स्वप्न में भोजन किया जा रहा है ऐसा दिखे तो रोग उत्पन्न होगा ऐसा समझो यदि स्वप्न में काले विषधर (सप) के द्वारा अपने काटता हुआ देखे तो राज्य प्राप्ति होती है। इसी प्रकार इस अध्याय में पूर्णत: स्वप्नों का फलों का ही वर्णन किया है, दिन में तन्द्रारूप में यदि किसी को स्वप्न दिखे तो उसका कोई फल नहीं होता हैं।
पर्वतारोहण करते दिखने पर समझो उनको राज्य की प्राप्ति होती है। किसी पर्वत से या ऊपर से नीचे गिरता हुआ दिखे तो समझो उसका पतन होने वाला
__ अशुभ स्वप्नों के आने पर तुरन्त वापस सो जावे और प्रात: उठकर शान्ति कर्म अवश्य करे। शुभ स्वप्नों के आने पर फिर सोने नहीं। अशुभ स्वप्न दिखने पर सोना परम आवश्यक है सो जाने पर उस स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है। आगे डॉक्टर साहब का मन्तव्य अवश्य देखे।
विवेचन–स्वप्न शास्त्रमें प्रधानतया निम्न सात प्रकारके स्वप्न बताये गये
हष्ट-जो कुछ जागृत अवस्थामें देखा हो उसीको स्वप्नावस्थामें देखा जाय। श्रुतसोनेके पहले कभी किसीसे सुना हो उसीको स्वप्नावस्था देखे।
अनुभूत—जो जागृत अवस्थामें किसी भाँति अनुभव किया हो, उसीको स्वप्न देखना अनुभूत है।
प्रार्थित—जिसकी जागृतावस्थामें प्रार्थना-इच्छाकी हो उसीको स्वप्न में देखे। कल्पित--जिसकी जागृतावस्थामें कल्पनाकी गई हो उसीको स्वप्नमें देखे।
भाविक जो कभी न तो देखा गया हो और न सुना हो, पर जो भविष्यमें होनेवाला हो उसे स्वप्नमें देखा जाय ।
दोषज वात, पित्त और कफ इनके विकृत हो जाने से देखा जाय। इन