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भद्रबाहु संहिता
(एतेस्वप्ना) इतने प्रकार के स्वप्न (यथोद्दिष्टाः) जो कहे गये हैं (प्रायश: फलदानृणाम्) वह प्राय: मनुष्यों को फल देने वाले हैं (प्रकृत्या कृपया चैव) उनमें कुछ स्वभावत: है (शेष: साध्यानिमित्ततः) शेष निमित्त पाकर फलते है।
भावार्थ—इतने प्रकार के स्वप्न जो कहे गये है प्राय: के मनुष्यों को फल देने वाले है उनमें कुछ स्वभावत और कुछ निमित्त पाकर फल देते है।। ८५॥
स्वप्नाध्यायममुं मुख्यं योऽधीयेत शुचिः स्वयम् ।
स पूज्योलभते राज्ञो नाना पुण्यश्च साधवः ।। ८६॥ (यो) जो ज्ञानी (अधीयेतशुचि स्वयम्) स्वयम् शुद्ध होकर अध्ययन करता है (मुख्यं ममुंस्वप्नाध्याय) मुख्य रूप से इस स्वप्नाध्याय का तो (स पूज्यो राज्ञो लभते) वह राजा के द्वारा पूजा को प्राप्त करता है (नाना पुण्यश्च साधवः) और नाना प्रकार के पुण्य प्राप्त करता है।
भावार्थ-जो साधु ज्ञानी पुरुष स्वयं शुद्ध होकर इस स्वप्नाध्याय का अध्ययन करता है वह पुण्य संचित करता हुआ राजा के द्वारा पूजा को प्राप्त करता है।। ८६॥
विशेष-अब आचार्य इस छब्बीसवें अध्याय में स्वप्नोंका वर्णन कर रहे
स्वप्नों का फल शुभाशुभरूप में होता है यह कर्मोदय से आता है।
स्वप्न तीन कारणों से आता है बातज, पीतज, कफज, ये रोगजनित स्वप्न है, रोगजनित स्वप्नों का फल मिथ्या होता है, उसका कोई फल नहीं होता। आचार्य श्री ने रात्रि के चारों प्रहरों के अनुसार चार विभागों में बाँट दिया है। प्रथम प्रहर का स्वप्न अति दूर जाकर फल देता है। दूसरे प्रहर का स्वप्न उससे थोड़ा जल्दी फल देता है तीसरे प्रहर का स्वप्न और जल्दी फल देता है किन्तु अन्तिम प्रहा का स्वप्न शीघ्राति शीघ्र फल देता है।
स्वप्नों के फल कृष्णपक्ष और शुक्ल की तिथियों के अनुसार होते हैं कृष्णपक्ष की कुछ तिथियों में आने वाले स्वप्न मिथ्या होते हैं या उल्टा फल होता है। शुक्ल पक्ष तिथियोंमें आने वाले स्वप्नोंका फल अवश्य होता है। मांगलिक द्रव्य, पंचपरमेष्ठि आदि स्वप्न में देखने पर उसका फल शुभ होता है, अमांगलिक वस्तुओं के देखने पर शुभफल भी और अशुभफल भी होता है।