________________
अष्टादशोऽध्यायः
उत्तराणि च पूर्वाणि याम्यायां दिशि हिंसति।
धातुवादविदो हन्यात्तज्ज्ञांश्च परिपीडयेत्॥३१॥ यदि बुध (उत्तराणि च पूर्वाणि) उत्तरा तीनों ओर पूर्वा तीनों (याम्यायां दिशि हिंसति) दक्षिण दिशा में घात करे तो (धातुवाद विदो हन्यात) धातुवाद को जानने वाले मारे जाते हैं (तज्ज्ञांश्च परिपीडयेत्) उसको जानने वालों को पीड़ा होती है।
भावार्थ-यदि बुध उत्तरा भाद्रपद, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा उसी प्रकार पूर्वाभाद्रपद पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा को दक्षिणदिशामें घात करे तो धातुवाद को जानने वाले मारे जाते हैं या पीड़ित होते हैं।। ३१ ।।
ज्येष्ठायामनु पूर्वेण स्वातौ च यदि तिष्ठति।
बुधस्य चरितं घोरं महादुःखदमुच्यते॥३२॥ (ज्येष्ठायांमनुपूर्वेण) ज्येष्ठा या (स्वातौ च यदि तिष्ठति) स्वाति नक्षत्रमें (बुधस्य) बुध की स्थिति हो (चरितं घोरं) और उसका ऐसा घोर चरित हो तो (महादुःखद मुच्यते) महादुःख उत्पन्न करता है।
भावार्थ-यदि बुध का चरित्र ज्येष्ठा या स्वाति में हो तो महान् दुःख उत्पन्न होगा ॥३२॥
उत्तरे त्वनयोः सौम्यो यदा दृश्येत पृष्ठतः।
पितृ देवमनु प्राप्तस्तदा मासमुपग्रहः ॥३३॥ (यदा) जन (सौम्यो) सोम्य (त्वनयोः) बुध (उत्तरे) उत्तर में (पृष्टत: दृश्येत) पीछे से दिखे तो और (पितृ देवमनुप्राप्त:) वो भी मघा को प्राप्त करे तो (तदा) तब (मासमुपग्रह:) एक महीने में कष्ट होता है।
भावार्थ-जब सौम्य बुध उत्तर में मघा को प्राप्त करता हुआ पीछे से दिखाई पड़े तो समझो एक महीने में महा कष्ट होगा ।। ३३॥
पुरस्तात् सह शुक्रेण यदि तिष्ठति सुप्रभः ।
बुधो मध्यगतो चापि तदा मेघा बहूदकाः ॥ ३४॥ (बुधो) बुध (मध्यगतो चापि) मध्यगत होकर और भी (पुरस्तात् सह शुक्रेण)