________________
भद्रबाहु संहिता |
४
बुधोविवर्णो मध्येन विशाखां यदि गच्छति।
ब्रह्म क्षत्रविनाशाय तदा ज्ञेयो न संशयः ॥२८॥ (बुधोविवर्णोमध्येन) बुध विवर्ण होकर मध्यसे (विशाखां यदि गच्छति) विशाखा नक्षत्र की ओर जाता है (तदा) तब (ब्रह्म क्षत्र विनाशाय) ब्राह्मण, क्षत्रियों का विनाश करता है (ज्ञेयो) ऐसा जानना चाहिये (न संशयः) इसमें सन्देह नहीं
भावार्थ-बुध यदि विवर्ण होकर मध्यसे विशाखा नक्षत्र की ओर गमन करता है तो ब्राह्मण और क्षत्रियों का विनाश होगा इसमें कोई सन्देह नहीं है।। २८॥
मासोदितोऽनुराधायां यदा सौम्यो निषेवते।
पशुधनचरान् धान्यं तदा पीडयते भृशम् ।। २९॥ (यदा) जब (मासोदितोऽनुराधाया) भास उदित अनुराधा नक्षत्र में बुध (सौम्यो निषेवते) सौम्य रूप से सेवन करता है तो (तदा) तब (पशुधन चरान् धान्यं) पशुधन और धान्यों को (पीडयते भृशम्) पीड़ा देता है।
भावार्थ-जब मास उदित अनुराधा नक्षत्र में बुध सौम्य रूप से सेवन करता है, तो तब पशुधन का व धान्यों का नाश होता है, उनको पीड़ा पहुँचती है।। २९॥
श्रवणे राज्यविभ्रंशो ब्राह्मे ब्राह्मण पीडनम्।
धनिष्ठायां च वैवयं धनं हन्ति धनेश्वरम् ।। ३०॥ (श्रवणेराज्यविभ्रंशो) श्रवण नक्षत्र का बुध विक: हो तो राज्य भंग होता है (ब्राह्मे ब्राह्मण पीडनम्) अभिजित विकृत हो तो ब्राह्मणों को पीड़ा होती है (धनिष्ठायां च वैवण्य) धनिष्ठा का बुध विर्वण हो तो (धनं हन्ति धनेश्वरम्) धनवानों के धन को हरता है।
भावार्थ-श्रवण नक्षत्र का बुध विकृत दिखलाई पड़े तो राज्य भंग होगा अभिजित में विकृत दिखे तो ब्राह्मणों को पीड़ा होती है, अगर धनिष्ठा में बुध विकृत दिखे तो धनवानों के धन की हानि होती है।। ३०॥