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अष्टादशोऽध्यायः
का नाश होता है (सो नयेद्भजते मासं) यह भय एक महीने तक रहता है (भद्रबाहुवचो यथा) ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ उक्त प्रकार के बुध वैश्यों को व शिल्पियों को और भी गर्भो को एक महीने में कष्ट होता है, सारथियों को भी कष्ट होता हैं, ऐसा भाद्रबाहु स्वामी का वचन है॥ २४॥
विभ्राजमानो रक्तो वा बुधो दृश्येत कश्चन।
नगराणां स्थिराणां च दीक्षितानां च तद्भयम् ।। २५॥ (बुधो) जब बुध (विभ्राजमाणो) शोभित होता हुआ (रक्तो वा) लाल वर्ण का (दृश्येत) दिखे (कश्चन) कभी तो (नागराणां स्थिराणां च) नागरिक, स्थिर और (दीक्षितानां च तद्भयम्) दीक्षित याने साधुओं को भय होगा।
भावार्थ-जब बुध कभी लाल वर्ण का होकर शोभित हो तो समझां नगरवासी, स्थिर और साधु-मुनियों को भय होगा॥२५॥
कृत्तिकास्वग्निदो रक्तो रोहिण्यां स क्षयङ्करः । सौम्ये रौद्रे तथाऽऽदित्थे पुष्ये सर्पे बुधः स्मृतः ।। २६॥ पितृदैवं तथाऽऽश्लेषां कलुषोयदि दृश्यते।
पित॒स्तान् विहङ्गांश्च सस्यं सभजते नयः ॥२७॥ (बुध:) बुध (कृत्तिकास्वाग्निदोरक्तो) कृत्तिका नक्षत्र में लाल वर्ण का हो तो, अग्नि का भय होगा, (रोहिण्यां स क्षयङ्करः) रोहिणी का हो तो क्षय करने वाला है (सौम्ये रौद्रे तथाऽऽदित्ये) मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु (पुष्ये सर्प स्मृतः) पुष्य मघा जानो (तथाऽऽश्लेषां) उसी प्रकार आश्लेषा (कलुषो यदि दृश्यते) इन नक्षत्रों में कलुषित दिखाई पड़े तो (पितृदैवं) पितर देव (पितृस्तान्) पितर स्थानों पर (विहङ्गाश्च) बहुत (सस्यं स भजते नयः) धान्यों की उत्पत्ति होती है।
भावार्थ- बुध कृत्तिका नक्षत्र में लाल वर्णका दिखलाई पड़े तो अग्नि भय होगा, उसी प्रकार रोहिणी में दिखे तो क्षय को करने वाला होता है, आगे और भी मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, मघा, आश्लेषा का बुध कलुषित दिखलाई पड़े तो पितृदेव पितृस्थानों पर बहुत ही धान्यों की उत्पत्ति होती है।। २६-२७॥