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भद्रबाहु संहिता
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सम्मुख शुक्र के साथ (यदि तिष्ठति) यदि ठहरा है (तदा) तब (मेघा बहूदका:) बादल बहुत वर्षा करते हैं।
___ भावार्थ-बुध मध्यगत होकर और भी सम्मुख शुक्र के साथ यदि ठहरता है तो बादल बहुत वर्षा करते हैं॥ ३४ ॥
दक्षिणेन तु पार्वेण यदा गच्छति दुःप्रभः ।
तदा सृजति लोकस्य महाशोकं महद्भयम्॥ ३५ ।। (यदा) जब बुध (दक्षिणेन) दक्षिण से (पाइँण) पीछे की ओर (दुष्प्रभ:) दुष्कान्ति दिखाता हुआ (गच्छति) जाता है (तु) तो (तदा) तब (लोकस्य) लोक को (महाशोकं महद्भयम्) महाशोक और महान् भय (सजति) सृजन करता है।
भावार्थ-जब बुध दक्षिण से पीछे की ओर खराब कान्ति वाला होकर गमन करता है तो लोकमें महाभय और महाशोक उत्पन्न होगा॥३५॥
धनिष्ठायां जलं हन्ति वारुणे जलजे वधेत् ।
वर्णहीनो यदा याति बुधो दक्षिणतस्तदा ॥ ३६॥ (यदा) जब (बुधो) बुध (दक्षिणतस्तदा वर्णहीनो) दक्षिण में वर्ण हीन होकर (याति) जाता है और (धनिष्ठायां जलं हन्ति) वो भी धनिष्ठा नक्षत्र में हो तो जल का घात करता है (वारुणे जलजं वधेत) पूर्वाषाढ़ामें गमन करे तो जल का वध या कमलों का वध होता है।
भावार्थ-जब बुध दक्षिण की ओर वर्ण हीन होकर धनिष्ठा या पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रमें गमन करे तो जलका, कमलों का व जल में उत्पन्न होने वालों का घात होता है।। ३६॥ तनुः समार्गो यदि सु प्रभोऽजित; समप्रसन्नो गतिमागतोन्नतिम्। यदा न रूक्षो न च दूरगो बुधस्तदा प्रजानां सुखमूर्जितं सृजेत् ॥ ३७॥
(बुधः) बुध (तनुः) ह्रस्व (समार्गो) समार्गी (यदि) जब (सु प्रभोऽजित:) सुकान्तिवाली, (समप्रसन्नोगतिमागतोन्नतिम्) समाकार प्रसन्नमति को प्राप्त (यदा न रूक्षो न च दूरगो) जब न रूक्ष हो न दूर हो (तदा) तब (प्रजानां सुखमूर्जितं सृजेत्) तो प्रजाओं को सुख का सृजन करेगा।