________________
अष्टादशोऽध्याय:
___ भावार्थ-जब बुध हुस्व, समार्गी, सुकान्तिवाला, समाकार प्रसन्नगति वाला, न दूर हो न रूक्ष हो तब प्रजाओं को सुख देगा ।। ३७॥
विशेष-अब इस अठारहवें अध्याय में आचार्य श्री बुध के प्रवास, अस्त, उदय, वर्ण, ग्रहयोग का व उसके फल का वर्णन करते हैं।
बुध की गति सौम्या, विमिश्रा, संक्षिप्ता, तीव्रा, घोरा, दुर्गा और पापा ये सात होती है।
सौम्या गति में बुध ४५ दिन तक दिखता है, विमिश्रा में दो पक्ष तक संक्षिप्ता में चौबीस दिन, तीक्ष्ण में दस रात, घोरा में छ: दिन, पाप. में तीन रात और दुर्गामें नौ दिन तक दिखता है।
बुध की सौम्या विमिश्रा, संक्षिप्ता गतियाँ हितकारी है, शेष सभी गतियाँ पाप रूप है अशुभ फल देती हैं।
____ अगर बुध का उदय हुआसो अन्न का भाव महँगा होगा, अतिवृष्टि, अग्निप्रकोप एवं तूफान आते हैं।
हस्त से ज्येष्ठा तक नक्षत्रों में बुध विचरण करे तो, भैंसोंको कष्ट, सुभिक्ष, पूर्ण वर्षा, तेल और तिलहन का भाव महँगा होगा, बंगाल, आसाम, बिहार, बम्बई, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, मध्य भारत में सुभिक्ष होता है। काश्मीर में अन्नकष्ट, राजस्थान में दुष्काल वर्षा का अभाव एवं राजनैतिक उथल-पुथल समस्त देश में होती हैं, जापान में चावल की कमी होती है, रूस और अमेरिका में खाद्यान्न की प्रचुरता रहने पर भी नाना प्रकार के कष्ट होते हैं।
__ इस बुध संचार के विषय में जैनेतर आचार्यों ने भी लिखा है जैसे—पराशर ऋषि, देवल आदि।
इनके मतानुसार कुछ अन्तर अवश्य पाया जाता है किन्तु विशेष अन्तर नहीं
पुष्य, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में संक्षिप्ता गति होती है यह गति २२ दिनों तक रहती है इस का फल मध्यम है विशेषता यह है कि इस गति से घी, तेल, पदार्थों का भाव महँगा होता है, देश के दक्षिण भाग में रहने वालों को थोड़ा कष्ट होता है,दक्षिण भी अन्न ज्यादा होता है, उत्तर में गुड़,