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पञ्चदशोरयायः
(सर्व निष्पद्यते धान्यं) सब प्रकार के धान्यों की उत्पत्ति होती है (न व्याधिर्नापि चेतयः) व्याधियाँ भी उत्पन्न नहीं होती है, (गोवीथी च संज्ञिता) जब गोवीथी में शुक्र गमन करे तो (खारी तदाऽष्टिका ज्ञेया) आठ खारी प्रमाण वर्षा जानना चाहिये।
भावार्थ-गोवीथी का शुक्र सब प्रकार के धान्यों की उत्पति करता है, और आठ खारी प्रमाण वर्षा होती हैं।। ६२॥
एतेषामेव यदा शुक्रो व्रजत्युत्तरतस्तदा।
मध्यमं सर्वमाचष्टे नेतयो नापिव्याधयः॥६३॥ (यदा) जब (शुक्रो) शुक्र (एतेषामेव) नक्षत्रों में होकर (व्रजत्युत्तरस्तदा) उत्तर दिशा की ओर गमन (मध्यम) मध्यम (सर्वचामष्टे) महामारी (व्याधयः) व्याधियाँ होती है।
भावार्थ--जब उपर्युक्त नक्षत्रों में शुक्र की ओर गमन करता है, तो मध्यम वर्ष होता है। तथा महामारी और व्याधियों का अभाव होता है।। ६३ ।।
निष्पत्तिः सर्व धान्यानां भयं चात्र न मूर्च्छति।
खारी चतुष्का विज्ञेया वृषवीथीति संज्ञिता॥६४॥ जब (वृषवीथीति संज्ञिता) वृष वीथी में शुक्र गमन करे तो (खारी चतुष्का विज्ञेया) चार खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है तुमको जानना चाहिये, (निष्पत्तिः सर्दधान्यानां) सब धान्यों की उत्पति होती है (भयं चात्र न मूर्च्छति) भय का व आतङ्क का अभाव रहेगा।
भावार्थ-जब वृषवीथीं में शुक्र गमन करे तो चार खारी प्रमाण धान्यो को उत्पत्ति होती है, सब प्रकार का धान्य उत्पन्न होता है किसी प्रकार का भय उत्पन्न नहीं होता हैं।। ६४ ।।
अभिजिच्छवणं चापि धनिष्ठावारुणे तथा। रेवती भरणी चैव तथा भाद्रपदाऽश्विनी।। ६५।। निश्चयास्तदा विपद्यन्ते खारी विन्द्याच्च पञ्चिका।
ऐरावणपथो ज्ञयोऽश्रेष्ठ एव प्रकीर्तितः ॥६६॥ (अभिजिच्छ्रवणं) अभिजित नक्षत्र (चापि) और भी (धनिष्ठा) धनिष्ठा (वारुणे