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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, मघा, अनुराधा, पुनर्वसु, स्वाति तथा विशाखा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी ॥ ५८॥
दक्षिणेन यदा शुक्रो व्रजत्येतैर्यदा समम्।
मध्यमं वर्षमाख्याति समे बीजानि वापयेत्॥ ५९॥ (यदा) जब (शुक्रो) शुक्र (दक्षिणेन) दक्षिण से (व्रजत्येतैर्यदासमम्) इन नक्षत्रों में गमन करता है तो समझो (मध्यमं वर्षमाख्याति) मध्यम वर्ष रहेगा और (समे बीजानि वापयेत्) समान भूमि पर बीजों का वपन करे।
__भावार्थ-जब शुक्र दक्षिण दिशा से इन नक्षत्रों में गमन करे तो समझो वर्षा व वर्ष दोनों ही मध्यम रहेगा, सम भूमि पर बीजों का वपन करे।॥ ५९॥
निष्पद्यन्ते च शस्यानि मध्यमेनापि वारिणा।
जरद्वपथश्चैव खारीं द्वात्रिंशकां भवेत्॥६०॥ (मध्यमे नापि वारिणा) मध्यम वर्षा होने पर भी (निष्पद्यन्ते च शस्यानि) धान्यों की उत्पत्ति अच्छी होती है (जरद्वपथश्चैव) जरद्वीथी में शुक्र का गमन हो तो (खारी द्वात्रिंशकां भवेत्) बत्तीस खारी प्रमाण वर्षा होती है।
भावार्थ-धान्यो की उत्पत्ति अच्छी होती है मध्यम वर्षा और वर्ष रहता है, अगर जरद्ववीथी में शुक्र का गमन हो तो बत्तीस खारी प्रमाण वर्षा होती हैं ।। ६० ।।
एतेषामेव मध्येन यदा गच्छति भार्गवः।
तदापि मध्यमं वर्ष मीषत् पूर्वाविशिष्यते॥६१॥ (यदा) जब (भार्गव:) शुक्र (एतेषामेवमध्येनगच्छति) इन नक्षत्रों में होकर जाता है तो (तदापिमध्यम वर्ष) तो भी वर्षा और वर्ष मध्यम रहता है (मीषत् पूर्वा विशिष्यते) पहले वर्ष से यह वर्ष कुछ उत्तम रहता है।
भावार्थ-इन नक्षत्रों के मध्य से यदि शुक्र जाता है तो समझो यह वर्ष मध्यम रहेगा किन्तु पहले वर्ष से यह वर्ष कुछ उत्तम रहेगा।। ६१॥
सर्व निष्पद्यते धान्यं न व्याधि पि चेतयः । खारी तदाऽष्टिका झेया गोवीथीति च संजिता ॥२॥