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पञ्चदशोऽध्यायः
(मृगवीथिति संज्ञिता) मृगवीथि संज्ञामें यदि (भार्गवेचरति) शुक्र गमन करता है तो (खारी द्वात्रिंशिका ज्ञेया) वर्षा ३२ खारी प्रमाण वर्षा होती है। (व्याधः त्रिषुविज्ञेयाः) तीन प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं।
__ भावार्थ-अगर मृगवीथि में शुक्र का गमन होता है तो समझो बत्तीस खारी प्रमाण वर्षा होती है तीन प्रकार की व्याधियाँ दैहिक, दैविक, भौतिक उत्पन्न हो जाती है॥५५॥
एतेषां तु यदा शुक्रो व्रजत्युत्तरतस्था। विषमं वर्षमाख्याति निम्ने बीजानि वापयेत् ॥५६॥ (यदा) जब (शुक्रो) शुक्र (एतेषां ब्रजत्युत्तरत् तथा) उत्तर दिशा में गमन करे (तु) तो (वर्ष विषमं माख्याति) वर्ष विषम होता है ऐसा कहना चाहिये, (निम्ने बीजानि वापयेत्) निम्न स्थानों में बीजों का वपन करना चाहिये।
भावार्थ-जब शुक्र उत्तर दिशा में गमन करे तो वह वर्ष विषम रहता है इसलिये नीचे के स्थानों में बीजों का वपन करना चाहिये ।। ५६।।
कोद्रवाणां बीजानां खारी षोढशिका वदेत्।
अजवीथीति विज्ञेया पुनरेषा न संशयः ।। ५७॥ (अजवीथीतिविज्ञेया) अगर शुक्र अजवीथी में गमन करे तो जानना चाहिये (क्रोद्रवाणां बीजानां) क्रोद्रव के बीज (खारी षोढशिका वदेत्) सोलह खारी प्रमाण उत्पन्न होगा ऐसा कहे (पुनरेषा न संशयः) इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ- अगर शुक्र अज वीथी में गमन करता है तो क्रोद्रव का बीज सोलह खारी प्रमाण उत्पन्न होता है इसमें कोई सन्देह नहीं है।। ५७ ।।
कृत्तिका रोहिणी चार्दा मघा मैत्रं पुनर्वसुः ।
स्वातिस्तथा विशाखासु फाल्गुन्यो रुभयोस्तथा।। ५८।। (कृत्तिका) कृत्तिका (रोहिणी) रोहिणी (चा ) और आर्द्रा (मघा) मघा (मैत्र) अनुराधा, (पुनर्वसुः) पुनर्वसु (स्वाति) स्वाति (तथा) तथा (विशाखासु) विशाखा (तथा) तथा (फाल्गुन्योरुभयोः) पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी।