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भद्रबाहु संहिता
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तथा) शतभिखा तथा (रेवती, भरणी चैव) रेवती, भरणी और (तथा भाद्रपदाऽश्विनी) तथा भाद्र पद, अश्विनी को (ऐरावण पथो ज्ञेयो) ऐरावण पथ समझना चाहिये (श्रेष्ठ एव प्रकीर्तित:) इसी को श्रेष्ठ कहा है, इस वीथी में शुक्र गमन होने से (निश्चयास्तदाविपद्यन्ते) तब निश्चय से जन समुदाय पर आपत्ती आती है (खारी विन्द्याच्चपञ्चिका) और पाँच खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होते हैं।
भावार्थ-ऐरावण पथ में शुक्र गमन करे तो समझो निश्चय से जन समुदाय पर आपत्ति आती है और पाँच खारी धान्य होता है, अभिजित, धनिष्ठा, शतभिखा, रेवती, भरणी, पूर्वाभाद्रपद, अश्विनी को ऐरावणवीथी कहा है।। ६५-६६॥
एषां यदा दक्षिणतो भार्गवः प्रतिपद्यते।
बहूदकं तदा विन्द्यात् महाधान्यानि वापयेत्॥१७॥ (एषां यदा दक्षिणतो) इस प्रकार के नक्षत्रों में यदि (भार्गव:) शुक्र (दक्षिण तो) दक्षिण में (प्रतिपद्यते) गमन करे तो (तदा) तब (बहूदक) बहुत वर्षा (विन्द्यात्) होगी ऐसा समझो (महाधान्यानि वापयेत्) बहुत ही धान्यों को बोना चाहिये।
भावार्थ-इस प्रकार के नक्षत्रों में यदि शुक्र दक्षिण दिशा में गमन करे तो समझो बहुत ही वर्षा होगी, धान्य भी बहुत उत्पन्न होगी, इसलिये धान्यो का वपन अच्छा करना चाहिये।। ६७।।
जल जानि तु शोभन्ते ये च जीवन्ति वारिणा।
खारी तदाष्टिका ज्ञेया गजवीथीति संज्ञिता॥६८॥ (जल जानि तु शोभन्ते) जलचर जीव शोभा पाते हैं (ये च जीवन्ति वारिणा) और आनन्दित होते है (खारी तदाष्टि का ज्ञेया) आठ खारी प्रमाण धान्य होगा (गजवीथीति संज्ञिता) तब समझो गजवीधी में शुक्र का गमन है।
भावार्थ-यदि गजवीथी में शुक्रगमन कर रहा हो तो समझो आठ खारी प्रमाण तो धान्य होगा, और सभी जलचर जीव आनन्दित होकर शोभा पायेगें॥६८॥
एताषामेव तु मध्येन यदा याति तु भार्गवः।
स्थलेष्वप्तबीजानि जायन्ते निरुपद्रवन ।। ६९॥ (एताषामेव तु मध्येन) इस प्रकार के नक्षत्रों में (यदायाति तु भार्गव:) यदि